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ॐ त्रिलोकसार
ॐ षट्खण्डागम
* पद्मपुराण
गाथा २२
सम्यग्दृष्टि पुरुष
जिनभाषित जो कथाप्रबंध (शास्त्र) हैं वे सब जीवों को संवेग रूप हैं अर्थात् धर्म में रुचि कराने वाले हैं
परन्तु
समयसारप्राभृत ॐ ॐ भगवती आराधना रत्नकरण्ड श्रावकाचार ॐ
जल में भिन्न कमलवत् होता है
संवेग सम्यक्त्व के होने पर होता है
और
सम्यक्त्व शुद्ध देशना अर्थात् सुगुरु के उपदेश से होता है।
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