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गाथा ६
सम्यग्दर्शन ही धर्म का मूल है
संयम ही जीवन का आभूषण है
मेरा प्रयोग करे।
असंयमी जीवों को देखकर संयमी जीवों के मन में बड़ा सन्ताप होता है कि 'हाय ! हाय !! देखो तो, संसार रूपी कुएँ में डूबते हुए भी ये जीव कैसे नाच रहे हैं !'
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