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गाथा २
(दान)
(तप)
(विचार
(अध्ययन
अरहंत देव
हे भाई ! यदि अपनी शक्ति की हीनता के कारण तू तपश्चरण, विशेष अध्ययन, दान तथा विचार नहीं कर पाता है
तो ये सब कार्य तू भले ही मत कर परन्तु एक सर्वज्ञ वीतराग देव की श्रद्धा तो दृढ रख क्योंकि जिस कार्य को करने के लिये अकेले एक अरहन्त देव समर्थ हैं उस कार्य को करने के लिये ये तपश्चरणादि कोई भी समर्थ नहीं हैं।