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वत्थु सहावो धम्मो
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म्यादि दसव
णमो अरिहंताणं
णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं
(णमो लोए सव्व साहूणं ।
एसो पंच णमोयारो, सव्य पावप्पणासणी, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं होइ मंगलं।
पंच नमस्कार मंत्र
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जैनं
(ॐ)
अहिंसा परमो धर्मः
'जयतु शासनम्
| जिनभाषित धर्म |
दंसण मूलो धम्मो
रयणत्तयं धम्मो
निर्ग्रथ गुरु मेरे प्राण हैं ।
गाथा १
अपना कार्य जिन्होंने कर लिया है।
ऐसे उत्तम कृतार्थ पुरुषों के हृदय में निरन्तर बसते हैं।
निर्ग्रन्थ गुरु
अरहंत देव
१. चार घातिया कर्मों का नाश करके अनंत ज्ञानादि को प्राप्त कर लिया है जिन्होंने ऐसे अरहन्त देव, २. अंतरंग मिथ्यात्वादि तथा बहिरंग वस्त्रादि परिग्रह से रहित ऐसे प्रशंसनीय गुरु, ३. हिंसादि दोष रहित जिनभाषित निर्मल धर्म और ४. पंच परमेष्ठी वाचक पंच णमोकार मंत्रये चार पदार्थ
जैन जयत् शासनम्
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मेरे हृदय में बसा है जिनधर्म
अरहंत के ध्यानयुक्त मुनि
णमोकार मंत्र जप