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________________ श्री नेमिचंद जी उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला नेमिचंद भंडारी कृत व्यवहार है वह परमार्थ धर्म को साधने वाला है अर्थात् वह परमार्थ के स्वरूप को पृथक् दिखलाता है अतः उससे जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा का आराधकपना होने से दर्शन - ज्ञानचारित्र की एकता रूप निर्मल बोधि उत्पन्न होती है ।। भावार्थ:- जो जिनोक्त व्यवहार है वह निश्चय का साधक है अतः शास्त्राभ्यास रूप व्यवहार से परमार्थ रूप वीतराग धर्म की प्राप्ति होती है - ऐसा जानना | | १३८ || गुरु को परीक्षा करके ही पूजना जे जे दीसंति गुरु, समय परिक्खाइ तेण पुज्जंति । पुण एगं सद्दहणं, दुप्पसहो जाव जं चरणं । । १३६ । । अर्थः- वर्तमान समय में संसार में जो-जो गुरु दिखाई देते हैं या गुरु कहलाते हैं उन सबको शास्त्र के द्वारा परीक्षा करके पूजना योग्य है । जिनमें शास्त्रोक्त गुण नहीं पाये जाएँ उनको तो मूर्खों के सिवाय कोई भी नहीं पूजता । आजकल तो एक सच्ची श्रद्धा करनी ही कठिन है तो जीवन पर्यन्त चारित्र धारण करना कठिन कैसे नहीं होगा अर्थात् होगा ही इसलिये जो सम्यक् चारित्र के धारक हैं वे ही गुरु पूज्य हैं- ऐसा गाथा का भाव जानना | | १३६ || शास्त्रानुसार परीक्षा करके ही गुरु को मानना ता एगो जुगपवरो, मज्झत्थ मणेहिं समयदिट्टीए । सम्मं परिक्खियव्वो, मुत्तूण पवाह- हलबोलं । । १४० । । ८१ भव्य जीव
SR No.009487
Book TitleUpdesh Siddhant Ratanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
PublisherSwadhyaya Premi Sabha Dariyaganj
Publication Year2006
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size540 MB
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