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क्रमांक विषय
पठ १४. इच्छाकार के योग्य श्रावक का स्वरूप
२-२६ १५. इच्छाकार के प्रधान अर्थ को न जानने वाले के सिद्धि की असंभवता
२-२७ १६. जिसके द्वारा मोक्ष मिलता है ऐसी आत्मा का श्रद्धान-ज्ञान करने की प्रेरणा
२-२७ १७. जिनसूत्र के जानने वाले मुनि का स्वरूप १४. तिलतुषमात्र भी परिग्रह का धारी मुनि निगोद का पात्र होता है
२-२६ ११. जिनवचन में अल्प या बहुत परिग्रहधारी लिंगी गर्हणीय है २-३१ २०. निर्ग्रन्थ महाव्रती त्रिगुप्तिगुप्त संयमी ही वंदनीय है
२-३२ २१. पहला लिंग मुनि का कहा, दूसरा लिंग उत्कृष्ट श्रावकों का है २-३३ २२. तीसरा लिंग आर्यिका का है
२-३४ २३. चाहे तीर्थंकर ही क्यों न हो पर वस्त्रधारी सीझता नहीं-ऐसा जिनशासन में कहा है
२-३४ २४. स्त्रियों के दिगम्बर दीक्षा के अनधिकार का कारण २-३५ २५. सम्यग्द ष्टि मार्गसंयुक्त स्त्रियों की निष्पापता
२-३६ २६. स्त्रियों को ध्यान की सिद्धि न हो सकने के कारण २-३६ २७. जिनसूत्र के श्रद्धान का फल-समस्त इच्छाओं की निव त्ति से सर्व सुख प्राप्ति
२-३७ 2. विषय वस्तु २-४० 5. गाथा चित्रावली २-४५-५० 3. गाथा चयन २-४१-४३ 6. अंतिम सूक्ति चित्र 4. सूक्ति प्रकाश २-४४ सूत्र पा० समाप्त २-५१
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