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________________ २-२८ क्रमांक विषय पठ १४. इच्छाकार के योग्य श्रावक का स्वरूप २-२६ १५. इच्छाकार के प्रधान अर्थ को न जानने वाले के सिद्धि की असंभवता २-२७ १६. जिसके द्वारा मोक्ष मिलता है ऐसी आत्मा का श्रद्धान-ज्ञान करने की प्रेरणा २-२७ १७. जिनसूत्र के जानने वाले मुनि का स्वरूप १४. तिलतुषमात्र भी परिग्रह का धारी मुनि निगोद का पात्र होता है २-२६ ११. जिनवचन में अल्प या बहुत परिग्रहधारी लिंगी गर्हणीय है २-३१ २०. निर्ग्रन्थ महाव्रती त्रिगुप्तिगुप्त संयमी ही वंदनीय है २-३२ २१. पहला लिंग मुनि का कहा, दूसरा लिंग उत्कृष्ट श्रावकों का है २-३३ २२. तीसरा लिंग आर्यिका का है २-३४ २३. चाहे तीर्थंकर ही क्यों न हो पर वस्त्रधारी सीझता नहीं-ऐसा जिनशासन में कहा है २-३४ २४. स्त्रियों के दिगम्बर दीक्षा के अनधिकार का कारण २-३५ २५. सम्यग्द ष्टि मार्गसंयुक्त स्त्रियों की निष्पापता २-३६ २६. स्त्रियों को ध्यान की सिद्धि न हो सकने के कारण २-३६ २७. जिनसूत्र के श्रद्धान का फल-समस्त इच्छाओं की निव त्ति से सर्व सुख प्राप्ति २-३७ 2. विषय वस्तु २-४० 5. गाथा चित्रावली २-४५-५० 3. गाथा चयन २-४१-४३ 6. अंतिम सूक्ति चित्र 4. सूक्ति प्रकाश २-४४ सूत्र पा० समाप्त २-५१ २-४
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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