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गाथा
चयन
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Mगाथा ४-'ताव ण जाणदि.... अर्थ-जब तक
यह जीव विषयों के वशीभूत हुआ वर्तता है तब तक ज्ञान को नहीं जानता है और ज्ञान को जाने बिना केवल विषयों से विरक्ति मात्र ही से पहले बंधे हुए कर्मों का क्षय नहीं करता।।१।। गा० ७,8–'णाणं णाऊण णरा...', 'जे पुण विसय....'अर्थ-कोई पुरुष ज्ञान को जानकर भी विषयादि रूप भाव में आसक्त रहते हैं वे विषयों में मोहित रहने वाले मूर्ख प्राणी चार गति रूप संसार में भ्रमण करते हैं तथा जो ज्ञान को जानकर उसकी भावना सहित होते हैं वे विषयों से विरक्त होते हुए तप और मूलगुण व उत्तरगुण युक्त होकर चतुर्गति रूप संसार को छेदते हैं इसमें संदेह नहीं
है।।२।। (गा० १9-'जीवदया दम.... अर्थ-जीवदया, इन्द्रियदमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य,
संतोष, सम्यग्दर्शन, ज्ञान और तप-ये सब शील के परिवार हैं।।३।। M* गा० २१-'जह विसय.... अर्थ-जैसे विषयों का सेवन विषयलुब्ध जीवों को विष का
देने वाला है वैसे ही घोर स्थावर और जंगम सबका विष प्राणियों का विनाश करता है तथापि इन सब विषों में विषयों का विष अत्यंत दारुण होता है।।४।। गा० २२-'वरि एक्कम्मि य.... अर्थ-विष की वेदना से हता हुआ जीव तो एक जन्म में ही संचार करता है परन्तु विषय रूप विष से हते हुए जीव अतिशय से संसार
वन में भ्रमण करते हैं ।।५।। M गा० २३–'णरएसु वेयणाओ.... अर्थ-विषयासक्त जीव नरकों में अत्यंत वेदना को,
तिर्यंचों और मनुष्यों में दु:खों को और देवों में दौर्भाग्य को पाते हैं ।।६।। IN गा० ३०-'जइ विसयलोलएहि...' अर्थ-यदि विषयों में लोलुपी और ज्ञानी पुरुषों ने
मोक्ष साधा हो तो दस पूर्व को जानने वाला वह रुद्रपुत्र नरक क्यों गया ! 117 || गा० ३२-'जाए विसयविरत्तो.... अर्थ-विषयों से विरक्त जीव नरक की प्रचुर वेदना को भी दूर हटा देता है और वहाँ से निकलकर अर्हन्त पद को पाता है-ऐसा जिन वर्द्धमान ने कहा है।।8।।
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