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________________ सूक्ति प्रकाश १. णवरि य सीलेण विणा विसया णाणं विणासंति।। गाथा २।। अर्थ-शील बिना इन्द्रियों के विषय ज्ञान को नष्ट कर देते हैं। २. ताव ण जाणदि णाणं विसयवलो जाव वट्टए जीवो।। ४।। अर्थ-जब तक जीव विषयों के वशीभूत हुआ वर्तता है तब तक ज्ञान को नहीं जानता है। ३. अत्थि धुवं णिव्वाणं विसएसु विरत्तचित्ताणं।। १२ ।। अर्थ-विषयों से विरक्तचित्त जीवों का निश्चित ही निर्वाण होता है। ४. सीलगुणवज्जिदाणं णिरत्थयं माणसं जम्म।। १५ ।। अर्थ-जो शीलगुण से रहित हैं उनका मनुष्य जन्म निरर्थक है। ५. तेसु सुयं उत्तमं सीलं।। १६ ।। अर्थ-व्याकरणादि शास्त्र और जिनागम को जानकर भी उनमें शील हो वही उत्तम है अर्थात शास्त्रों को जाने और विषय-कषायों में आसक्त रहे तो उन शास्त्र का जानना उत्तम नहीं है। ६. सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुसं तेसिं।। १8।। अर्थ-जिनमें शील सुशील है अर्थात् कषायादि की तीव्र आसक्तता नहीं है उनका मनुष्यपना सुजीवित है अर्थात् उत्तम है। ७. सीलं विसयाण अरी सीलं मोक्खस्स सोवाणं।।२०।। अर्थ-शील विषयों का शत्रु है और शील ही मोक्ष की सीढ़ी है। 18. विसयविसं दारुणं होई ।।२१।। अर्थ-विषय रूपी विष अत्यन्त दारुण होता है। होता है। ८.४७
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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