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________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचित o आचार्य कुन्दकुन्द Hoat ADco Place Dod SAAMANAVARI Dog/ WINNA WANAMANAS 100CE ROCH | मंडित है उनके देव भी वल्लभ होते हैं अर्थात् हित करने वाले-सहायी होते है परन्तु जो 'श्रुतपारग' अर्थात् शास्त्रों के पार पहुंचे हैं और ग्यारह अंग तक पढ़े हुए हैं ऐसे बहुत हैं, उनमें कई शील गुण से रहित दुःशील हैं अर्थात् विषय-कषायों में आसक्त हैं वे लोक में 'अल्पक हैं-न्यून हैं (तुच्छ-अनादरणीय हैं) वे मनुष्य लोगों | के भी प्रिय नहीं होते तब देव उनके कहाँ से सहायी होंगे ! भावार्थ __ शास्त्र बहुत जाने और विषयासक्त हो तो उसका सहायी कोई नहीं होता, चोर व अन्यायी की लोक में कोई सहायता नहीं करता और शील गुण से मंडित हो परन्तु ज्ञान चाहे थोड़ा भी तो उसके उपकारी सहायी देव भी होते हैं तब मनुष्य तो सहायी होंगे ही होंगे अर्थात शील गुणवान सबका प्यारा होता है।।१७।। उत्थानिका %%崇崇崇榮樂樂業先業事業事業事業蒸蒸勇崇勇崇明崇明 崇崇崇崇崇崇崇崇明崇崇勇兼崇明藥業樂業事業勇崇勇 आगे कहते हैं कि 'जिनके शील सुशील है उनका मनुष्य भव में जीना भला है': सव्वे वि य परिहीणा रूवविरुवावि पदिदसुवयावि। सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुसं तेसिं ।। १४ ।। सब प्राणियों में हीन, रूपविरूप, यौवनपतित हों। मानुष्य उनका सुजीवित, जिनका कि शील सुशील हो।।१8 ।। अर्थ जो सब प्राणियों में हीन हैं, कुलादि से न्यून हैं, रूप से विरूप हैं-सुन्दर नहीं हैं तथा 'पतित सुवय' अर्थात् अवस्था से सुन्दर नहीं हैं- व द्ध हो गए हैं परन्तु जिनमें शील सुशील है-स्वभाव जिनका उत्तम है और विषय-कषायादि की तीव्र आसक्ति नहीं है उनका मनुष्यपना सुजीवित है अर्थात् जीना भला है। टि0-1. यहाँ 'अल्पक' का अर्थ 'संख्या में अल्प' नहीं है वरन् 'तुच्छ-अनादरणीय' है। 藥業或業業助業業助、 崇明藥藥業業業助業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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