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अष्ट पाहड़
स्वामी विरचित 669
• आचार्य कुन्दकुन्द
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आगे कहते हैं कि 'बहुत शास्त्रों का ज्ञान होते हुए भी शील ही उत्तम है' :
वायरण छंद वइसेसिय ववहार णायसत्थेसु। वेदेऊण सुदेसु य तेसु सुयं उत्तमं सील।। १६ ।। व्याकरण, छंद, व्यवहार, वैशेषिक व न्याय के शास्त्र अरु। हो जिनागम का ज्ञान तो भी, शील उत्तम सर्व में ।।१६ ।।
अर्थ व्याकरण, छंद, वैशेषिक, व्यवहार और न्याय शास्त्र तथा 'श्रुत' अर्थात् जिनागम-इनमें उन व्याकरणादि को और श्रुत को जानकर भी इनका ज्ञान यदि शीलयुक्त हो तो ही उत्तम है।
भावार्थ व्याकरणादि शास्त्र जाने और जिनागम को भी जाने तो भी उनमें शीलयुक्तता ही उत्तम है। शास्त्रों को जानकर भी यदि विषय-कषायों में आसक्त रहे तो उन शास्त्रों का जानना उत्तम नहीं है।।१६।।
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आगे कहते हैं कि 'जो शील गुण से मंडित हैं वे देवों के भी वल्लभ हैं :
सीलगुणमंडिदाणं देवा भवियाण वल्लहा होति। सुदपारयपउराणं दुस्सीला अप्पिला लोए ।। १७।। जो शीलगुण मंडित भविकजन, देव वल्लभ होंय वे। श्रुतपारगत हों पर कुशीली, लोक में हैं तुच्छ वे ।।१७।।
अर्थ जो भव्य प्राणी शील और सम्यग्दर्शनादि गुण अथवा शील सो ही गुण उससे 泰拳拳崇明崇明藥明黨S%崇明藥藥崇明崇明崇明