________________
अष्ट पाहुड
areate
स्वामी विरचित
o आचार्य कुन्दकुन्द
ADOOD
Doc
Dod
SAINMMAP
-Doc/N
Doo
TWMJANA
WANAMANAS
Dee
Dool
भावार्थ लोक में सब सामग्री से जो न्यून हैं परन्तु स्वभाव जिनका उत्तम है, विषय-कषायों में आसक्त नहीं हैं तो वे उत्तम ही हैं, उनका मनुष्य भव सफल है और जीवन प्रशंसा के योग्य है।।१८।।
崇崇崇崇崇崇崇崇崇添乐業事業事業事業事業乐業事業男崇明
आगे कहते हैं कि 'जितने उत्तम भले कार्य हैं वे सब शील के परिवार हैं' :
जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेरसंतोसो। सम्मइंसण णाणं तओ य सीलस्स परिवारो ।। १५ ।।
प्राणीदया, दम, सत्य, तप, सन्तोष तथा अचौर्य अरु। ब्रह्मचर्य, समकित, ज्ञान ये, सब शील के परिवार हैं।।१9 ।।
अर्थ जीवदया, इन्द्रियों का दमन, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और तप ये सब शील के परिवार हैं।
भावार्थ 'शील' ऐसा स्वभाव का तथा प्रक ति का नाम प्रसिद्ध है सो मिथ्यात्व सहित कषाय रूप ज्ञान की परिणति है वह तो दुःशील है जिसे संसार प्रक ति कहते हैं तथा यह प्रक ति पलटकर सम्यक् प्रक ति होती है सो सुशील है जिसे मोक्ष सन्मुख प्रक ति कहते हैं। ऐसे सुशील के जीवदयादि जो गाथा में कहे, सो सब ही परिवार हैं क्योंकि संसार प्रकृति पलटती है तब संसार-शरीर-भोगों से वैराग्य होता है और मोक्ष से अनुराग होता है तब सम्यग्दर्शनादि परिणाम होते हैं, तब जितनी प्रक ति होती है सो मोक्ष के सन्मुख होती है-यह ही सुशील है सो जिसके संसार का अंत आता है उसके यह प्रक ति होती है और जब तक यह प्रक ति नहीं होती तब तक संसार भ्रमण ही है-ऐसा जानना ।।१६।।
崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂
禁禁禁禁禁禁藥騰崇崇崇崇勇兼業助