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________________ अष्ट पाहुड seats स्वामी विरचित आचाय कुन्दकुन्द Doo Dee 聯崇崇崇勇涉禁藥藥業崇明藥業藥業%業業坊業崇崇 चोराण लाउराण य जुद्ध विवादं च तीव्वकम्मेहिं । जंतेण दिव्वमाणो गच्छदि लिंगी णरयवासं ।। १०।। जो चोर झूठों में करावे, युद्ध और विवाद को। करे यंत्रक्रीड़ा तीव्रकर्म सो, लिंगी जाता नरक में ।।१०।। अर्थ जो लिंगी ऐसे प्रवर्तता है वह नरकवास को प्राप्त होता है। जो चोरों के और 'लापर' अर्थात् झूठ बोलने वालों के युद्ध और विवाद कराता है तथा 'तीव्रकर्म' अर्थात् जिनमें बहुत पाप उत्पन्न हो ऐसे जो तीव्र कषायों के कार्य उनके द्वारा तथा जो 'यंत्र' अर्थात् चौपड़, शतरंज, पासा और हिंडोला आदि उनसे क्रीड़ा करता हआ वर्तता है वह ऐसे वर्तन करता हुआ नरक जाता है। यहाँ 'लाउराणं' का | पाठांतर 'राउलाणं' ऐसा भी है इसका अर्थ है कि वह 'रावल' अर्थात् जो राजकार्य करने वाले उनके युद्ध, विवाद कराता है-ऐसा जानना। भावार्थ लिंग धारण करके ऐसे कार्य करता है वह नरक पाता ही है-इसमें संशय नहीं है।।१०।। 崇勇涉养乐操兼崇崇先崇崇明崇勇兼崇勇攀事業事業事業事業事業第 100 आगे कहते हैं कि जो लिंग धारण करके लिंग के योग्य कार्य करता हुआ दुःखी रहता है, उन कार्यों का आदर नहीं करता वह भी नरक में जाता है : दसणणाणचरित्ते तवसंजमणियमणिच्चकम्मम्मि । पीडयदि बद्धमाणो पावदि लिंगी णरयवासं ।। ११।। दग-ज्ञान-चरण व नित्यकर्म अरु तप, नियम, संयम विर्षे । जो वर्तने पर दुःखी हो, वह लिंगी जाता नरक में ।।११।। REENNE७-१३), 藥業樂業樂業助業 樂業藥業崇明崇明業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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