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________________ aIDA अष्ट पाहुड़ata स्वामी विरचित o आचार्य कुन्दकुन्द SACH TOVAVALYAN Dool Dode BAVAMANAS की वर्षा', (६)विहार के समय चरणकमल के नीचे देवों के द्वारा सुवर्णमयी कमलों की रचना, (१०)भूमि का धान्य निष्पत्ति सहित होना, (११)दिशा-आकाश का निर्मल होना, (१२)देवों का आहानन ('आओ आओ' ऐसे बुलाना) शब्द होना, (१३)धर्म चक्र का आगे चलना एवं (१४)अष्ट मंगल द्रव्य का होना-ऐसे चौदह हैं।' ये सब मिलकर चौंतीस हुए। जो आठ प्रतिहार्य होते हैं उनके नाम ये हैं-(१)अशोकव क्ष, (२)पुष्पव ष्टि, (३)दिव्यध्वनि, (४)चामर, (५)सिंहासन, (६)छत्र, (७)भामंडल एवं (८)दुन्दुभि वादित्र-ऐसे आठ हैं। । इन अतिशयों से युक्त अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख एवं अनंतवीर्य सहित तीर्थंकर परमदेव जब तक जीवों के सम्बोधन के निमित्त विहार करते हुए विराजते 崇崇明崇明崇崇明崇明崇明崇明崇明藥業或業兼藥業業事業事業 टिO- 1. वायुकुमार जाति के देवों द्वारा प्रमार्जित भूमि पर मेघकुमार जाति के देव सुगन्धित जल की व ष्टि करते हैं। 2. भगवान के पाँव के नीचे एक और आगे सात व पीछे सात इस तरह बीच की एक पंक्ति में एक-एक योजन प्रमाण के पन्द्रह कमल होते हैं। इसके सिवाय बाईं ओर सात व दाईं ओर भी सात-इस प्रकार कमलों की चौदह पंक्तियाँ और होती हैं जिनमें भी पन्द्रह-पन्द्रह कमल प्रत्येक पंक्ति में होते हैं पर ये प्रत्येक अर्ध योजन प्रमाण होते हैं। इस तरह पन्द्रह पंक्तियाँ और हर पंक्ति में पन्द्रह कमल सो कुल दो सौ पच्चीस' कमलों की रचना भगवान के पाद तले रहती है। प्रत्येक कमल एक हजार सुवर्णमयी पत्तों व पद्मरागमणिमय केशर से सुशोभित होता है। 3. प थ्वी पर गेहूँ आदि अठारह प्रकार के अनाज उत्पन्न होते हैं। 4. शरत्काल सरोवर के सद श आकाश निर्मल हो जाता है और सारी ही दिशाएँ धूलि, धूम्र (धुंआ), धुंध, अन्धकार, दिग्दाह व टिड्डी दल आदि से रहित हो जाती हैं। 5. भवनवासी देव ज्योतिषी, व्यंतर एवं कल्पवासी देवों का आह्वान करते हैं कि 'आप लोग ___भगवान की महापूजा के लिए शीघ्र ही आओ।' 6. चक्रवर्ती के सुदर्शन चक्र के समान एक हजार आरों से युक्त, रत्नमयी, सूर्य के तेज को भी तिरस्क त कर देने वाला धर्मचक्र भगवान के आगे-आगे गगन में निराधार चलता है। 7. अष्ट मंगल द्रव्य के नाम-१. छत्र, २. ध्वजा, ३. दर्पण, ४. कलश, ५. चामर, ६. ह्रारी, ७. __ताल (पंखा) एवं ८. सुप्रतिष्ठक (ठौना)। ये प्रत्येक एक सौ आठ-एक सौ आठ होते हैं। 崇明崇崇崇明崇明崇%A9%騰崇明崇明崇崇明崇明崇明 |TION
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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