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________________ 卐卐業業卐業卐業 卐業卐 आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ Mea स्वामी विरचित (३) श्वेतरुधिरता' (सफेद रक्त का होना), (४) समचतुरस्रसंस्थान, (५) वज्रव षभनाराच संहनन, (६) सुरूपता, (७) सुगंधता, (८) सुलक्षणता, (६) अतुल वीर्य और (१०) हित - मित वचन - ऐसे दस हैं। घातिया कर्मों के क्षय होने पर ये दस होते हैं :– (१) शत योजन सुभिक्षता (सौ-सौ योजन तक अकाल का अभाव ), ( २ ) आकाशगमन, (३) प्राणिवध का अभाव, (४) कवलाहार ( ग्रास के आहार) का अभाव, (५) उपसर्ग का अभाव, (६)चतुर्मुखत्व (चार मुखों का दीखना ), (७) सर्व विद्याप्रभुत्व, ( ८ ) छायारहितत्व', (६) लोचन निःस्पंदन (नेत्रों का टिमकार रहित होना) एवं (१०) केश - नख वद्धिरहितत्व - ऐसे दस हैं। देवों द्वारा किए गए ये चौदह होते हैं :- (१)सकलार्द्धमागधी भाषा, 4 (२)सब जीवों के मैत्रीभाव, (३) सब ऋतुओं के फल - पुष्पों का प्रादुर्भाव, (४) दर्पण के समान पथ्वी का होना, (५) मंद सुगंधित पवन का चलना, (५) सारे लोक में आनन्द का वर्तना, (७) भूमि का कंटकादि रहित होना, (८) देवों के द्वारा गंधोदक टि०- 1. 'श्रु० टी०' में 'क्षीरगौररुधिरमांसत्वं' पद दिया है जिसका अर्थ है कि 'उनके रक्त और माँस- दोनों ही दूध के समान सफेद होते हैं । ' 2. दर्पण में तीर्थंकर के मुख का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता और न उनके शरीर की छाया पड़ती है । 3. ये अतिशय भी केवलज्ञान होने के बाद होते हैं। 4. दिव्यध्वनि में अर्द्ध भाषा मगधदेशभाषात्मक और अर्द्ध सर्वभाषामय होती है। इस पर 'श्रु० टी०' में प्रश्न किया है कि 'यदि ऐसा है तो फिर इस अतिशय में देवोपनीतपना कैसे सिद्ध होता है ?' उत्तर वहीं दिया है- 'भाषा में यह उक्त प्रकार का परिणमन मगध देवों के सन्निधान में होता है इसीलिए इसमें देवोपनीतपना बन जाता है । ' 5. समस्त जनसमूह मागध देवों के अतिशय के वश मागधी भाषा में बोलते हैं और प्रीतिंकर देवों के अतिशय के वश परस्पर में मित्रता से रहते हैं । 6. पथ्वी पर ऐसे वक्ष प्रकट होते हैं जिनमें सब ऋतुओं के फलों के गुच्छे, किसलय और फूल दिखाई देते हैं । 7. भूमि दर्पणतल के समान मनोहर और रत्नमयी हो जाती है । 8. वायुकुमार देव भगवान के विहार काल में आगे-आगे की एक योजन पर्यन्त भूमिसुध वायु के द्वारा धूलि, कंटक, तण, कीड़े, 卐卐卐卐業 कंकड़ और पत्थरों आदि से रहित करते जाते हैं । १-४८ 卐糕糕卐 ※業業業業業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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