SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य कुन्दकुन्द ● अष्ट पाहुड़ Mea स्वामी विरचित चौंतीस अतिशय सहित आठ, सहस्र लक्षण युक्त हो । जब तक विहार प्रभु करे, प्रतिमा स्थावर है कही । । ३५ ।। अर्थ केवलज्ञान होने के पश्चात् जिनेन्द्र भगवान जब तक इस लोक में आर्यखंड में विहार करते हैं तब तक उनकी वह 'प्रतिमा' अर्थात् शरीर सहित प्रतिबिम्ब उसको 'स्थावर प्रतिमा' इस नाम से कहते हैं। कैसे हैं जिनेन्द्र - एक हजार आठ तो लक्षणों से संयुक्त हैं। और कैसे हैं- चौंतीस अतिशयों से संयुक्त हैं । वहाँ श्री वक्ष को आदि लेकर एक सौ आठ तो लक्षण होते हैं और तिल व मस्से को आदि लेकर नौ सौ व्यंजन होते हैं। -- चौंतीस अतिशयों में वे ये दस तो जन्म से ही लिए हुए उत्पन्न होते हैं (१)निःस्वेदता (पसीने से रहितता), (२) निर्मलता 2 (शरीर में मल-मूत्र का अभाव ), टि०- 1. भगवान के शरीर में हाथ और पैर आदि में शंख, कमल, स्वस्तिक, ध्वजा, कलशयुगल, विमान, हाथी, सिंह, पर्वत, चन्द्र, सूर्य, कुण्डलादि षोडशाभरण, फल सहित उद्यान, लक्ष्मी, सरस्वती, गाय, बैल, महानिधि, राजमहल, अष्ट प्रातिहार्य, अष्ट मंगल द्रव्य आदि एक सौ आठ लक्षण होते हैं। 2. निर्मलता का अर्थ है-शरीर में मल-मूत्र का अभाव होना । न केवल तीर्थंकर के मल-मूत्र का अभाव होता है किन्तु उनके माता-पिता के भी मल-मूत्र का अभाव होता है । सम्बन्ध गाथा है तित्थयरा तप्पियरा हलहर चक्की य अद्धचक्की य देवा य भूयभूमा आहारो अत्थि णत्थि णीहारो ।। अर्थ - तीर्थंकर, तीर्थंकरों के माता-पिता, हलधर (बलभद्र ), चक्रवर्ती, अर्द्ध चक्रवर्ती (नारायण), देव और भोगभूमिया जीव- इनके आहार तो है परन्तु नीहार ( मल-मूत्र ) नहीं । इसी प्रकार तीर्थंकरों के डाढ़ी-मूंछ भी नहीं होती किन्तु सिर पर मनोज्ञ केश (घुंघराले बाल) होते हैं जैसा कि कहा गया है देवा वि य णेरइया भोयभुय चक्की तह य तित्थयरा । सव्वे केसव रामा कामा णिक्कुंचिया होंति।। अर्थ-देव, नारकी, भोगभूमिज, मनुष्य, चक्रवर्ती, तीर्थंकर, नारायण, बलभद्र और कामदेव डाढ़ी-मूँछ से रहित होते हैं । 卐業 १-४७ 卐卐卐 卐糕糕卐 卐糕糕卐業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy