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आचार्य कुन्दकुन्द
● अष्ट पाहुड़
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'उत्तम गोत्र सहित मनुष्यपने को पाकर सम्यक्त्व की प्राप्ति से मोक्ष प्राप्त हो जाता है- यह सम्यक्त्व का माहात्म्य है' :
Mea स्वामी विरचित
दट्ठूण य मणुयत्तं 1 सहियं तह उत्तमेण गोत्तेण ।
लद्धू य सम्मत्तं अक्खयसुक्खं च मोक्खं च ।। ३४ । । पा करके उत्तम गोत्र युत, मनुजत्व फिर सम्यक्त्व को ।
पा करके अक्षय सौख्य पाए, उस सहित मुक्ति लहे । । ३४ ।।
यह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य
अर्थ
उत्तम गोत्र सहित मनुष्यपना प्रत्यक्ष पाकर और वहाँ सम्यक्त्व प्राप्त करके अविनाशी सुखस्वरूप केवलज्ञान पाते हैं तथा उस सुख सहित मोक्ष पाते हैं ।
भावार्थ
।। ३४ ।। उत्थानिका
आगे प्रश्न उत्पन्न होता है कि 'सम्यक्त्व के प्रभाव से मोक्ष पाते हैं तो तत्काल
ही मोक्ष होता है या कुछ काल स्थित भी रहते हैं उसके समाधान रूप गाथा कहते हैं :
विहरदि जाव जिनिंदो सहसट्टसुलक्खणेहिं संजुत्तो ।
चउतीस अइसयजुदो सा पडिमा थावरा भणिया ।। ३५ ।।
टिo-1. 'श्रु० टी०' में 'दट्ठूण य मणुयत्तं' का अर्थ किया है- 'मनुष्य जन्म को देखकर-जानकर अर्थात् महासमुद्र में करच्युत रत्न के समान अनेक द ष्टान्तों से दुर्लभ विचार कर ।' 'म० टी० ' में 'दट्ठूण य मणुयत्तं' के स्थान पर 'लद्धूण य मणुयत्तं' पाठ है एवं ज० व वी० प्रति' में 'दुक्खेण य मणुयत्तं' पाठ है जिसका अर्थ 'वी० प्रति' में किया है- 'दुःख करि बहुरि मनुष्य होता है । ' 【專業卐
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