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________________ क्रमांक विषय पष्ठ १३. आहार के निमित्त दौड़ने वाले और कलह एवं ईर्ष्या करने वाले मुनिवेषी जिनमार्ग से बहिष्कृत हैं। ७-११ १४. अदत्तादान एवं परनिन्दा करने वाले मुनिवेषी चोर के समान श्रमण हैं ७-१६ १५. ईर्या समिति को भूलकर अटपट दौड़ने व गिरने वाले मुनिवेषी पशु हैं, श्रमण नहीं ७-१७ १६. बंध को न गिनते हुए प थ्वी व धान्य का खंडन करने वाले मुनिवेषी तिर्यंचयोनि हैं, श्रमण नहीं ७-१७ १७. महिलावर्ग में राग व पर को दूषण देने वाले दर्शन-ज्ञान हीन लिंगी पशु हैं, श्रमण नहीं १४. प्रव्रज्याहीन ग ही व शिष्यों पर स्नेहयुक्त आचार-विनय हीन लिंगी तिर्यंच हैं, श्रमण नहीं ७-१६ ११. संयतों के मध्य वर्तते भी और बहुशास्त्रज्ञ भी कुप्रव त्तियुक्त लिंगी भावविनष्ट हैं, श्रमण नहीं ७-२० २०. महिलावर्ग में विश्वस्त व व्यवहारयुक्त लिंगी पार्श्वस्थ से भी निष्कृट हैं, श्रमण नहीं ७-२० २१. कुशील स्त्रियों के घर आहारादि करने वाले उनके प्रशंसक लिंगी अज्ञानी हैं, श्रमण नहीं ७-२१ २२. गणधरादि द्वारा उपदिष्ट 'लिंगपाहुड' को जानकर मुनिधर्म को यत्न सहित पालने वाले को मोक्ष का लाभ होता है ७-२२ ७-१८ ७-२१-३४ 2. विषय वस्तु ७-२४ 3. गाथा चयन ७-२६ 4. सूक्ति प्रकाश ७-२७ 5. गाथा चित्रावली 6. अंतिम सूक्ति चित्र लिंग पा० समाप्त ७-३५ ७-४
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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