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अनुक्रम
1. गाथा विवरण
क्रमांक
विषय
१. मंगलाचरणपूर्वक श्रमण लिंगपाहुड़ के निरूपण की प्रतिज्ञा २. मात्र बाह्य लिंग कार्यकारी नहीं अतः भावधर्म को जानने
की प्रेरणा
३. लिंग धारण करके लिंगीपने के भाव को हास्य मात्र गिनने वाले पापमोहितमति हैं
७. अब्रह्मसेवी पापमोहितमति मुनिवेषी संसार वन में भ्रमता है ८. रत्नत्रय से विमुख आर्तध्यानी मुनिवेषी अनंत संसारी होता है
9. विवाह कृषिकर्म, वाणिज्य एवं जीवघात का विधायक मुनिवेषी नरक जाता है
१०. चोर एवं असत्यवादियों के युद्ध विवाद कराने वाले लिंगी नरक जाते हैं
११. लिंगयोग्य क्रियाएँ करते हुए पीड़ा पाने वाले मुनिवेषी नरकवास पाते हैं
१२. व्यभिचारी व भोजन के रस में आसक्त लिंगी पशु हैं, श्रमण नहीं
पष्ठ
७-७
४. न त्यगायनादि में अनुरागी मुनिवेषी तिर्यंचयोनि हैं, श्रमण नहीं ७-८ ५. परिग्रह से लगाव रखने वाला पापमोहितमति मुनि तिर्यंचयोनि
है, श्रमण नहीं
६. मानगर्वित, नित्य कलहकारी, वादविवादी व जुआरी लिंगी नरकगामी है
७-३
७-६
७-६
७-६
७-६
७-१०
७-११
७-१२
७-१२
७-१३
७-१४