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________________ अष्ट पाहड Pre-EVE स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Dog/ -100 FDoo. bore मा बताया है कि ऐसा निग्रंथ रूप भी जो किसी अन्य आशय से धारण करे तो वह वेष मोक्षमार्ग नहीं है, वह ऐसा हो कि जिसमें केवल मोक्ष ही की अपेक्षा हो और उसको जो माने वह सम्यग्द ष्टि है-ऐसा जानना ।।१।। उत्थानिका आगे मिथ्याद ष्टि के चिन्ह कहते है :कुच्छियदेवं धम्म कुच्छियलिंग च वंदए जो दु। लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु।। १२।। जो देव कुत्सित, धर्म कुत्सित लिंग का वंदन करे। लज्जा से, भय से, गर्व से है प्रकट मिथ्याद ष्टि वह ।।१२।। अर्थ 添添添馬养業樂業兼崇明崇勇攀事業兼藥業樂業 崇先养养步骤崇禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 १. जो क्षुधादि और रागद्वेषादि दोषों से दूषित हो वह 'कुत्सित' देव है, २. जो हिंसादि दोषों से सहित हो वह 'कुत्सित धर्म' है और ३. जो परिग्रहादि सहित वेष | हो वह 'कुत्सित-लिंग' है-इनको जो वंदता है-पूजता है वह प्रकट मिथ्याद ष्टि है। यहाँ विशेष कहते हैं-जो इनको भला-हित करने वाले मानकर वंदता है-पूजता है वह तो प्रकट मिथ्याद ष्टि है ही परन्तु जो लज्जा, भय और गारव-इन कारणों से भी वंदता-पूजता है तो वह भी प्रकट मिथ्याद ष्टि है। यहाँ लज्जा तो ऐसे है-लोग इनको वन्दते-पूजते हैं, यदि हम नहीं पूजेंगे तो लोग हमको क्या कहेंगे, हमारी इस लोक में प्रतिष्ठा चली जायेगी-इस प्रकार तो लज्जा से वंदना व पूजा करे। भय ऐसे है-इनको राजादि मानते हैं, हम नहीं मानेंगे तो हमारे ऊपर कुछ उपद्रव आ जायेगा-इस प्रकार भय से वंदना व पूजा करे। गारव ऐसे है हम बड़े हैं, महंत पुरुष हैं, सब ही का सन्मान करते हैं, इन कार्यों से ही हमारी बड़ाई है-इस प्रकार गारव से वंदना व पूजना होता है। ऐसे मिथ्याद ष्टि के चिन्ह कहे। 19२।। 先業業業業事業業 崇崇明崇明崇明崇崇明 2074
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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