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अष्ट पाहुड़strata
स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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भावार्थ लोक में १. जो कुछ दानादि करें उनको 'धन्य' कहते हैं, २. विवाहादि यज्ञादि करते हैं उनको 'कृतार्थ' कहते हैं, ३. युद्ध में पीछे न लौटे, जीते उसको 'शूरवीर' कहते हैं तथा ४. बहुत शास्त्र पढ़े उसको 'पंडित' कहते हैं सो ये सब तो कहने के हैं। जो मोक्ष के कारण सम्यक्त्व को मलिन नहीं करते हैं-निरतिचार पालते हैं वे धन्य हैं, वे ही कृतार्थ हैं, वे ही शूरवीर हैं, वे ही पंडित हैं और वे ही मनुष्य हैं, इसके बिना मनुष्य पशु के समान है-ऐसा सम्यक्त्व का माहात्म्य कहा।।89 ।।
शउत्थानिका]
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आगे शिष्य पूछता है कि 'वह सम्यक्त्व कैसा है ?' उसका समाधान करने के
___लिए सम्यक्त्व के बाह्य चिन्ह कहते हैं :हिंसारहिए धम्मे अट्ठारसदोसवज्जिए देवे। णिग्गंथे पव्वयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं ।। 90।। हिंसा रहित तो धर्म, अठारह दोष वर्जित देव अरु । निग्रंथ प्रवचन में जो श्रद्धा हो, तो समकित होय है।।90 ।।
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अर्थ
हिंसा रहित धर्म, अठारह दोष रहित देव, 'निग्रंथ प्रवचन' अर्थात मोक्ष का मार्ग-इनमें श्रद्धान होने पर सम्यक्त्व होता है।
भावार्थ लौकिकजन तथा अन्य मत वाले जीवों की हिंसा से धर्म मानते हैं और जिनमत में अहिंसा धर्म कहा है सो उसी का श्रद्धान करे और अन्य का श्रद्धान न करे वह सम्यग्द ष्टि है। लौकिक अन्यमती जिन्हें मानते हैं वे सब देव क्षुधादि तथा रागद्वेषादि दोषों से संयुक्त हैं और वीतराग सर्वज्ञ अरहंत देव सब दोषों से रहित हैं उनको जो देव माने-श्रद्धान करे वह सम्यग्द ष्टि है।
यहाँ जो अठारह दोष कहे वे प्रधानता की अपेक्षा से कहे हैं उनको उपलक्षण रूप जानना और इनके समान अन्य भी जान लेना तथा 'निग्रंथ प्रवचन' अर्थात्