SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्ट पाहुड. atest स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Allore Doo/N DOOK Dod HDool PRO अर्थ जिस कारण से परद्रव्य में जो राग है वह संसार ही का कारण है इस कारण से ही जो योगीश्वर मुनि हैं वे नित्य निरन्तर आत्मा की ही भावना करते हैं। भावार्थ कोई ऐसी आशंका करता है कि 'परद्रव्य में राग करने से क्या होता है ? जो परद्रव्य है वह तो पर है ही और अपने राग जिस काल हुआ उसी काल है पीछे मिट ही जाता है ?' उसको उपदेश किया है कि '१. परद्रव्य से राग करने पर परद्रव्य अपने साथ लगता है-यह प्रसिद्ध है, २. अपने राग का संस्कार दढ़ होता है जो परलोक तक भी चला जाता है-यह युक्तिसिद्ध है और ३. जिनागम में राग से जो कर्म का बंध कहा है उसका उदय अन्य जन्म का कारण है-इस प्रकार परद्रव्य में राग से संसार होता है इसलिये योगीश्वर मुनि परद्रव्य से राग छोड़कर आत्मा में निरंतर भावना रखते हैं' |७१।। 添添添添添添聽聽先帶男崇勇樂樂事業乐养男男戀勇 崇崇勇涉帶禁藥男崇崇崇明崇勇兼崇勇崇崇崇崇勇攀業 आगे कहते हैं कि 'ऐसे समभाव से चारित्र होता है' :णिंदाए य पसंसाए दुक्खे य सुहएसु च। सत्तूणं चेव बंधूणं चारित्तं समभावदो।। ७२।। दुःख में तथा सुख में, प्रशंसा और निन्दा के विर्षे । शत्रू में एवं बंधु में, समभाव से चारित्र हो।।७२ ।। अर्थ निन्दा में और प्रशंसा में तथा दुःख में और सुख में तथा शत्रु में और बन्धु-मित्र में समभाव जो समता परिणाम अर्थात् राग-द्वेष से रहितपना-ऐसे भाव से चारित्र होता है। भावार्थ ___ चारित्र का स्वरूप यह कहा है कि आत्मा का ज्ञानस्वभाव है सो कर्म के 業樂業業崇明藥業、 ६-६३ 樂崇崇明崇勇崇明業 7rys
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy