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________________ 業業業業業業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहुड़ उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'आहार, आसन और निद्रा - इनको जीतकर आत्मा का ध्यान करना' : स्वामी विरचित आहारासणणिद्दाजयं च काऊण जिणवरमएण । झायव्वो णिय अप्पा णाऊणं गुरुपसाएण । । ६३ । । जिनवर के मत से अशन, आसन, निद्रा तीनों जीतकर । धरो आतमा का ध्यान उसको, गुरु प्रसाद से जानकर ।। ६३।। अर्थ आहार, आसन व निद्रा - इनको जीतकर और जिनवर के मत से तथा गुरु के प्रसाद से जानकर निज आत्मा का ध्यान करना । भावार्थ और आहार, आसन और निद्रा को जीतकर आत्मा का ध्यान करना तो अन्य मतों में भी कहते हैं परन्तु उनके यथार्थ विधान नहीं है इसलिए आचार्य कहते हैं कि जैसे जिनमत में कहा है उस विधान को गुरूओं के प्रसाद से जानकर और ध्यान करने पर सफल है अतः जैसा जैन सिद्धान्त में आत्मा का स्वरूप तथा ध्यान का स्वरूप आहार आसन व निद्रा - इनको जीतने का विधान कहा है वैसा जानकर इनमें प्रवर्तना । । ६३ । । उत्थानिका आगे जिस आत्मा का ध्यान करना कहा वह आत्मा कैसा है सो कहते हैं : अप्पा चरित्तवंतो दंसणणाणेण संजुदो अप्पा | सो झायव्वो णिच्चं णाऊणं गुरुपसाएण । । ६४।। चारित्रवंत है आतमा और ज्ञानदर्शन युक्त है । वह नित्य ही ध्यातव्य है, श्री गुरु प्रसाद से जानकर ।। ६४ ।। ६-५७ 卐卐卐] *縢糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕縢縢業 卐糕糕卐業卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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