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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहुड़
अर्थ
आत्मा है सो चारित्रवान है तथा दर्शन व ज्ञान से सहित है-ऐसा आत्मा गुरु के प्रसाद से जानकर और ध्यान करना ।
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स्वामी विरचित
भावार्थ
आत्मा का रूप दर्शन - ज्ञान - चारित्रमयी है सो इसका स्वरूप जैन गुरूओं के प्रसाद से जाना जाता है, अन्यमती अपनी बुद्धिकल्पित जैसा तैसा मानकर ध्यान करते हैं उनके यथार्थ सिद्धि नहीं है इसलिए जैनमत के अनुसार ध्यान करना - ऐसा उपदेश है । । ६४ ।।
२ क उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'आत्मा को जानना, उसकी भावना भाना और विषयों से विरक्त होना-ये उत्तरोत्तर दुःख से प्राप्त होते हैं' :
दुक्खे णज्जइ अप्पा अप्पा णाऊण भावणा दुक्खं ।
भावियसहावपुरिसो विसएसु विरच्चए दुक्खं । । ६५ । । दुःखों से जानके आतमा, फिर भावना हो दुःख T भावितस्वभाव जो पुरुष उसे हो, विषय विरक्ति दुःख से ।। ६५ ।। अर्थ
प्रथम तो आत्मा को जो जाना जाता है सो दुःख से जाना जाता है तथा आत्मा को जानकर भी उसकी भावना करना अर्थात् फिर-फिर उसी का अनुभव करना दुःख से होता है और कदाचित् भावना भी किसी प्रकार से हो जाये तो भाया है निज भाव जिसने ऐसा पुरुष विषयों से विरक्त बड़े दुःख से होता है।
भावार्थ
आत्मा को जानना, उसकी भावना भाना और विषयों से विरक्त होना- उत्तरोत्तर यह योग मिलना बहुत दुर्लभ है इसलिए यह उपदेश है कि योग मिलने पर प्रमादी नहीं होना । । ६५ ।।
६-५८
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