________________
अष्ट पाहुड
state
स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
6
CA
Dool
Bloot
Dey
अर्थ तत्त्वरुचि है सो सम्यक्त्व है, तत्त्व का ग्रहण है सो सम्यग्ज्ञान है और परिहार है सो चारित्र है-ऐसा जिनवरेन्द्र तीर्थंकर सर्वज्ञदेव ने कहा है।
भावार्थ जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध एवं मोक्ष-इन तत्त्वों का श्रद्धान, रुचि और प्रतीति सो सम्यग्दर्शन है तथा इन ही को जानना सो सम्यग्ज्ञान है तथा परद्रव्य का परिहार अर्थात् उस सम्बन्धी क्रिया की निव त्ति सो चारित्र है-ऐसा जिनेश्वर देव ने कहा है। इनको निश्चय-व्यवहार नय से आगम के अनुसार साधना ।।३८।।
添添添馬养業樂業兼崇明崇勇攀事業兼藥業樂業
आगे सम्यग्दर्शन को प्रधान करके कहते हैं :दंसणसुद्धो सुद्धो दंसणसुद्धो लहेइ णिव्वाणं । दंसणविहीणपुरिसो ण लहइ तह इच्छियं लाह।। ३६।।
दर्शन से शुद्ध ही शुद्ध है, वह पाता है निर्वाण को। दर्शन विहीन जो पुरुष, इच्छित लाभ को पाता नहीं।। ३9 ।।
अर्थ जो पुरुष सम्यग्दर्शन से शुद्ध है सो ही शुद्ध है क्योंकि जो दर्शनशुद्ध है वह निर्वाण को पाता है। जो दर्शन से हीन है वह पुरुष वांछित लाभ को नहीं पाता है-यह न्याय है।
भावार्थ लोक में भी यह प्रसिद्ध है कि यदि कोई पुरुष किसी वस्तु को चाहता है परन्तु उसे उसकी रुचि, प्रतीति और श्रद्धान नहीं है तो उसे उसकी प्राप्ति नहीं होती वैसे ही अपने स्वरूप रूप तत्त्व की रुचि, प्रतीति और श्रद्धा यदि नहीं होती तो उसकी प्राप्ति नहीं होती क्योंकि सम्यग्दर्शन ही निर्वाण की प्राप्ति में प्रधान है।।३।।
崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇藥藥事業事業業助兼勇崇勇
業樂業業崇明藥業、
| 崇明崇明藥迷藥業%