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अष्ट पाहुड.
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स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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भावार्थ निर्वाण की प्राप्ति जब कर्म का नाश हो तब होती है और कर्म का नाश शुद्धात्मा के ध्यान से होता है सो संसार से निकलकर जो मोक्ष को चाहता है वह शुद्ध आत्मा जो कर्ममल से रहित और अनंत चतुष्टय सहित जो परमात्मा उसको ध्याता है, मोक्ष का उपाय इसके अतिरिक्त अन्य नहीं है।।२६।।
उत्थानिका
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आगे आत्मा को कैसे ध्यावें उसकी विधि बताते हैं :सव्वे कसाय मुत्तुं गारवमयरायदोसवामोहं। लोयववहारविरओ अप्पा झाएह झाणत्थो।। २७। व्यामोह गारव, राग, मद व द्वेष सकल कषाय तज। वह छोड लोक व्यवहार, हो ध्यानस्थ ध्यावे आत्म को।। २७।।
अर्थ मुनि है सो सब कषायों को छोड़कर तथा गारव, मद, राग, द्वेष और मोह को छोड़कर और लोकव्यवहार से विरक्त हुआ ध्यान में स्थित होकर आत्मा को ध्याता है।
भावार्थ मुनि आत्मा को ध्यावे सो ऐसा हुआ ध्यावे-(१) प्रथम तो क्रोध, मान, माया और लोभ-ये जो कषाय हैं उन सभी को छोड़े, (२) गारव को छोड़े, (३) मद जाति आदि के भेद से आठ प्रकार का है उनको छोड़े, (४) राग-द्वेष को छोड़े, (५) मोह को छोड़े तथा (६) लोकव्यवहार जो संघ में रहने में परस्पर विनयाचार, वैयाव त्य, धर्मोपदेश और पढ़ना-पढ़ाना आदि है उसको भी छोड़कर ध्यान में स्थित होवेइस प्रकार आत्मा को ध्यावे।
यहाँ कोई पूछता है कि 'सब कषायों का छोड़ना कहा उसमें तो गारव और मदादि सब आ गए फिर भिन्न क्यों कहे ?'
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