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आचार्य कुन्दकुन्द
सग्गं तवेण सव्वो वि पावए तह वि झाणजोएण ।
तप से तो स्वर्ग सब ही पाते हैं
* अष्ट पाहुड़
जो पावइ सो पावइ परलोए सासयं सोक्खं ।। २३ । । तप से लहें सब स्वर्ग पर जो, ध्यान ही के योग से।
पाते उसे परलोक में, पाते वे शाश्वत सौख्य को ।। २३ ।।
ही ध्यान के योग से परलोक में
को पाते हैं ।। २३ ।।
कायक्लेशादि तप तो सब ही मत के धारक करते हैं और वे सब ही तपस्वी मंद
परन्तु जो ध्यान से स्वर्ग पाते हैं वे जिनमार्ग
में जैसा कहा वैसे ध्यान के योग से परलोक में शाश्वत है सुख जिसमें ऐसे निर्वाण
उत्थानिका
कषाय के निमित्त से स्वर्ग को पाते हैं
स्वामी विरचित
अर्थ
तथापि जो ध्यान के योग से स्वर्ग पाते हैं वे शाश्वत सुख को पाते हैं । भावार्थ
आगे ध्यान के योग से मोक्ष पाते हैं उसको द ष्टान्त - दान्त के द्वारा दढ़
करते हैं अहसोहणजो एणं सुद्धं हेमं हवेइ जह कालाई लद्धीए
ज्यों शुद्धता पावे सुवर्ण, अतीव शोधन योग से ।
परमातमा हो जीव त्यों, कालादि लब्धि प्राप्त कर ।। २४ ।।
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तह य ।
अप्पा परमप्पओ हवदि ।। २४ ।।
टि0 - 1. यह ज्ञान-वैराग्य की भारी महिमा है कि स्वर्ग तो तपस्वी व ध्यानी दोनों को ही मिला परन्तु
परलोक में वत सुख का अधिकारी ज्ञान-वैराग्य का धनी होने के कारण ध्यानी ही हुआ, तपस्वी नहीं ।
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