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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहुड़
स्वामी विरचित
अर्थ
कोई पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में यदि सौ योजन चला जाए तो वह इस भुवनतल में क्या आधा कोश नहीं जाएगा अर्थात् जाएगा ही यह प्रकट जानो । भावार्थ
जैसे कोई पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में यदि सौ योजन चल लेता है तो उसके लिए आधा कोस चलना तो अत्यंत सुगम ही है वैसे ही जिनमार्ग से यदि मोक्ष प्राप्त हो जाता है तो स्वर्ग पाना तो अत्यंत सुगम ही है । । २१ । ।
उत्थानिका
आगे इसी अर्थ का अन्य द ष्टान्त कहते हैं
जो कोडि णरे जिप्पइ सुहडो संगम्मएहिं सव्वेहिं ।
सो किं जिप्पइ एक्कं णरं ण संगम्मए सुहडो ।। २२ ।।
संग्राम को युत कोटि नर को, जीते रण में जो सुभट ।
वह सुभट क्या नर एक को, संग्राम में नहीं जीतेगा ।। २२ ।।
अर्थ
यदि कोई सुभट संग्राम में सारे ही संग्राम करने वालों सहित करोड़ों मनुष्यों को सुगमता से जीत ले तो वह सुभट क्या एक नर को नहीं जीतेगा अर्थात् जीतेगा ही ।
भावार्थ
जो जिनमार्ग में प्रवर्तता है वह सारे कर्मों का नाश कर देता है तो क्या स्वर्ग को
रोकने वाले एक पापकर्म का नाश नहीं करेगा अर्थात् करेगा ही करेगा । । २२ ।।
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'स्वर्ग तो तप से सब ही पाते हैं परन्तु जो ध्यान के योग से
स्वर्ग पाते हैं वे उस ध्यान के योग से मोक्ष भी पाते हैं :
६-२४
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