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________________ 業業業業業業業業業業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहुड़ उत्थानिका स्वामी विरचित आगे बंध के और मोक्ष के कारण का संक्षेप रूप आगम का वचन कहते हैं : परदव्वरओ बज्झइ विरओ मुंचेइ विविहकम्मेहिं । एसो जिणउवएसो समासओ बंधमोक्खस्स ।। १३ ।। परद्रव्य में रत बंधे छूटे, विरत विध-विध कर्म से । संक्षिप्त जिन उपदेश यह है बंध का और मोक्ष का ।। १३ ।। अर्थ जो जीव परद्रव्य में रत है- रागी है वह तो अनेक प्रकार के कर्मों से बँधता है अर्थात् कर्मों का बंध करता है और जो परद्रव्य से विरत है- रागी नहीं है वह अनेक प्रकार के कर्मों से छूटता है - यह बंध का और मोक्ष का संक्षेप से जिनदेव का उपदेश है । भावार्थ बंध- मोक्ष के कारण का कथन अनेक प्रकार से है उसका यह संक्षेप है कि परद्रव्य से रागभाव सो तो बंध का कारण है और विरागभाव सो मोक्ष का कारण है - ऐसा संक्षेप से जिनेन्द्र का उपदेश है ।।१३।। २ उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'जो स्वद्रव्य में रत है वह सम्यग्द ष्टि होता है और कर्मों का नाश करता है' : सद्दव्वरओ सवणो सम्माइट्टी हवेइ नियमेण । सम्मत्तपरिणदो उण खवेइ दुट्टट्टकम्माइं।। १४ ।। स्वद्रव्य में रत साधु, सद्द ष्टि नियम से होय है। सम्यक्त्व से परिणमित वह, दुष्टाष्ट कर्म का क्षय करे । । १४ ।। ६-१८ 卐卐卐] 卐卐卐卐業業卐糕券 卐糕糕卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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