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होते हैं।
ध्यान में स्थित हुए निरन्तर उस परमात्मा को अनुभवगोचर करके निर्वाण को प्राप्त
आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहुड़
कैसा है निर्वाण - अव्याबाध है, जहाँ किसी प्रकार की बाधा नहीं है;
और कैसा है - अनन्त है, जिसका नाश नहीं है;
और कैसा है-अनुपम है, जिसको किसी की उपमा नहीं लगती है।
भावार्थ
स्वामी विरचित
आचार्य कहते हैं कि 'ऐसे परमात्मा को आगे कहेंगे जिसको मुनि ध्यान में
निरन्तर अनुभव करके और केवलज्ञान प्राप्त करके निर्वाण को पाते हैं।' यहाँ यह
तात्पर्य है कि ‘परमात्मा के ध्यान से मोक्ष होता है । । ३ । ।
उत्थानिका
आगे परमात्मा कैसा है - ऐसा ज्ञान कराने के लिए आत्मा को तीन प्रकार का
दिखाते हैं :
ध्यान करना ।
तिपयारो सो अप्पा परमंतर बाहिरो हु देहीणं ।
तत्थ परो झाइज्जइ अंतोवाएण चयहि बहिरप्पं । । ४ । । हैप्राणियों के परम, अतंर, बहिर त्रिविध ही आत्मा ।
बहिरात्म तज हो अन्तरात्मा, ध्याओ तुम परमात्मा ।। ४ ।।
अर्थ
वह आत्मा प्राणियों के इन तीन प्रकार का है - अतंरात्मा, बहिरात्मा और
परमात्मा। सो अंतरात्मपने के उपाय से बहिरात्मपने को छोड़कर परमात्मा का
मोक्ष होता है ।।४।।
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भावार्थ
बहिरात्मपने को छोड़कर अंतरात्मा रूप होकर परमात्मा का ध्यान करना- इससे
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