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________________ 卐糕糕卐業卐業卐業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहुड़ उत्थानिका स्वामी विरचित आगे तीन प्रकार की आत्मा का स्वरूप दिखाते हैं :अक्खाणि बाहिरप्पा अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो । कम्मकलंकविमुक्को परमप्पा भण्ण देवो ।। ५ ।। बहिरात्मा है इन्द्रि चित्, संकल्प अन्तर आतमा। जो कर्ममल से मुक्त वह, परमात्मा वही देव है ।। ५ ।। अर्थ (१) अक्ष जो स्पर्शनादि इन्द्रियाँ - वे तो बाह्य आत्मा हैं क्योंकि इन्द्रियों से स्पर्श आदि विषयों का जब ज्ञान होता है तब लोग ऐसा ही जानते हैं कि 'जो ये इन्द्रियाँ हैं वे ही आत्मा हैं' इस प्रकार इन्द्रियों को बाह्य आत्मा कहते हैं। (२) अन्तरात्मा है सो अन्तरंग में आत्मा का प्रकट अनुभवगोचर संकल्प है। शरीर एवं इन्द्रियों से भिन्न, मन के द्वारा जो देखने-जानने वाला है सो मैं हूँ-ऐसा स्वसंवेदनगोचर संकल्प सो ही अन्तरात्मा है। (३) कर्म जो द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि, भावकर्म राग-द्वेष-मोहादि और नोकर्म शरीरादि सो ही हुआ कलंक मल उससे विमुक्त-रहित एवं अनंतज्ञानादि गुण सहित सो परमात्मा है, वह ही देव है, अन्य को देव कहना उपचार है। *縢糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕糕蛋糕 भावार्थ बाह्य आत्मा तो इन्द्रियों को कहा और अंतरात्मा देह में स्थित और देखना-जानना जिसके पाया जाता है ऐसा मन के द्वारा जो संकल्प है सो है तथा परमात्मा कर्म कलंक से रहित कहा सो यहाँ ऐसा बताया है कि (१) यह जीव जब तक बाह्य शरीरादि ही को आत्मा जानता है तब तक तो बहिरात्मा है, संसारी है तथा (२) जब यह अन्तरंग में आत्मा को जानता है तब सम्यग्द ष्टि होता है तब अंतरात्मा है और (३) यह ही जीव जब परमात्मा का ध्यान करके कर्म कलंक से रहित होता है तब पहले तो केवलज्ञान प्राप्त कर अरिहंत होता है पश्चात् सिद्ध पद को पाता है-इन दोनों ही को परमात्मा कहते हैं । अरिहंत तो भाव कलंक से रहित हैं और T सिद्ध द्रव्य एवं भाव रूप दोनों प्रकार के कलंक से रहित हैं- ऐसा जानना । । ५ । । ६-१२ 卐卐卐] 卐糕糕卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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