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________________ अष्ट पाहड स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द #loor HDOOT PAGE •lod Cayn Ena अर्थ आचार्य कहते हैं कि 'उस पूर्वोक्त देव को नमस्कार करके परमात्मा जो उत्कृष्ट शुद्ध आत्मा उसको, परम योगीश्वर जो उत्कृष्ट योग-ध्यान को धारण करने वाले मुनिराज उनके लिए कहूंगा। कैसा है पूर्वोक्त देव-(१) अनंत और श्रेष्ठ जो ज्ञान-दर्शन वे जिसके पाए जाते हैं तथा (२) शुद्ध है-कर्म मल से रहित है। अथवा कैसा है परमात्मा-(१) अनंत है वर अर्थात् श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन जिसमें, और कैसा है-(२) शुद्ध है, कर्ममल से रहित है। तथा कैसा है-(३) परम उत्कृष्ट है पद जिसका। भावार्थ इस ग्रंथ में जैसा मोक्ष पद है और उसे जिस कारण से पाया जाता है उसका वर्णन करेंगे अतः उस रीति से उस ही की प्रतिज्ञा की है तथा 'योगीश्वरों के लिए कहेंगे' इसका आशय यह है कि ऐसे मोक्षपद को शुद्ध परमात्मा के ध्यान से पाया जाता है सो उस ध्यान की योग्यता योगीश्वरों के ही प्रधान रूप से है, ग हस्थों के यह प्रधान नहीं है।।२।। 添添添馬养業樂業兼崇明崇勇攀事業兼藥業樂業 崇崇勇涉帶禁藥男崇崇崇明崇勇兼崇勇崇崇崇崇勇攀業 आगे कहते हैं कि 'जिस परमात्मा को कहने की प्रतिज्ञा की उसको योगी-ध्यानी मुनि जानकर उसका ध्यान करके परम पद को पाते हैं :जं जाणिऊण जोई जोअत्थो जोइऊण अणवरयं। अव्वाबाहमणंतं अणोवमं हवइ णिव्वाणं ।। ३।। योगस्थ योगी जान जिसको, अनवरत ध्याया करें। उपमाविहीन असीम अव्याबाध, शिव पाया करें।। ३।। अर्थ आगे जिस परमात्मा को कहेंगे उसको जानकर योगी जो मुनि वे 'योग' अर्थात् टि0-1. गहस्थों के ध्यान का निषेध नहीं किया, उसकी प्रधानता का निषेध किया है कि 'योगीवरों के ही यह ध्यान प्रधान है, गहस्थों के नहीं।' 業業藥崇崇明崇勇票 PRENE
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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