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अष्ट पाहुstrata
स्वामी विरचित
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आचार्य कुन्दकुन्द
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जैसा सर्वज्ञ वीतराग के आगम में कहा है वैसा करता है। वहाँ उसका रूप निश्चय-व्यवहारात्मक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप मोक्षमार्ग कहा है, उसमें निश्चय तो शुद्ध स्वरूप के श्रद्धान, ज्ञान एवं चारित्र को कहा है और व्यवहार जिनदेव सर्वज्ञ वीतराग, उनके वचन तथा उन वचनों के अनुसार प्रवर्तने वाले जो मुनि-श्रावक, उनकी भक्ति, वंदना, वैयाव त्ति एवं विनय आदि करना सो है क्योंकि वे मोक्षमार्ग में प्रवर्ताने को उपकारी हैं। उपकारी का उपकार मानना न्याय है एवं लोपना अन्याय है।
तथा स्वरूप के साधक जो अहिंसा आदि महाव्रत तथा यत्न रूप प्रव त्ति-समिति, गुप्ति रूप प्रवर्तना और इनमें दोष लगने पर अपनी निन्दा-गर्दादि करना, गुरुओं का दिया प्रायश्चित लेना, शक्ति के अनुसार तप करना, परीषह सहना और दशलक्षणधर्म में प्रवर्तना इत्यादि शुद्धात्मा के अनुकूल क्रिया रूप प्रवर्तना आदि हैं, इनमें कुछ राग का अंश रहता है तब तक शुभकर्म का बंध होता है तो भी वह प्रधान नहीं है क्योंकि इनमें प्रवर्तने वाले को शुभ कर्म के फल की इच्छा नहीं है इसलिए अबंध तुल्य है इत्यादि प्रव त्ति आगमोक्त व्यवहार मोक्षमार्ग है। इसमें प्रव त्ति रूप जो परिणाम है उसमें निव त्ति प्रधान है इसलिए उसका निश्चय मोक्षमार्ग से विरोध नहीं है। इस प्रकार निश्चय–व्यवहार स्वरूप मोक्षमार्ग का संक्षेप है, इस ही को शुद्ध भाव कहा है, वहाँ भी इसमें सम्यग्दर्शन को प्रधानता से कहा है, सम्यग्दर्शन बिना सर्व व्यवहार मोक्ष का कारण नहीं है। और सम्यग्दर्शन के व्यवहार में जिनदेव की भक्ति प्रधान है, यह सम्यग्दर्शन को बताने का मुख्य चिन्ह
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टि0-1 निचयव्यवहारात्मक रत्नत्र्य को मार्ग बताया क्योंकि निचय का लोप करेंगे तो तत्त्व का ही
लोप होगा और व्यवहार देव, स्त्र, गुरु की भक्ति, वन्दना, विनय, वैयावत्ति आदि है, सो निचय मोक्षमार्ग में प्रवर्तावने को उपकारी है, उसे नहीं मानेंगे तो उपकारी के उपकार लोपने
रूप अन्याय होगा। 2. [सुद्धात्मा के अनुकूल क्रिया रूप प्रवर्तनां' पद सुन्दर है। व्रत, समिति, गुप्ति आदि रूप प्रवत्ति स्वरूप की साधक तभी है जब वह द्धात्मा के अनुकूल हो। समस्त भ क्रियाएँ ऐसे करनी हैं जैसे वे द्धात्मभावना की पुष्टि करें और निचय रत्नत्र्य में साधन रूप हों। मान, लोभ रूप विपरीत अभिप्राय से की गई क्रियाएँ संसार की साधक होती हैं और सम्यक् अभिप्राय से
की गई मोक्षमार्ग की साधक वा सुद्धात्मा के अनुकूल होती हैं। 業業樂業業業業 崇崇明藥業%崇勇崇明業
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