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________________ staअष्ट पाहड स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Doc/N Dod. ADOG/ DOO 聯繫听器听听器听听听听听听听听听听听听听器垢器 आगे फिर ऐसे मुनियों की महिमा करते हैं :मायावेल्लि असेसा मोहमहातरुवरम्मि' आरूढा। विसयविसफुल्लफुल्लिय लुणंति मुणि णाणसत्थेण।। १५४।। आरूढ़ मोह महातरु, पुष्पित विषय विषपुष्प से। ज्ञानास्त्र से मुनि काटें उस, सम्पूर्ण माया बेल को ।।१५8 ।। अर्थ मुनि हैं वे 'माया' अर्थात् कपट रूपी जो बेल है उसको समस्त को ज्ञान रूपी शस्त्र से काटते हैं। कैसी है माया बेल-मोह रूपी जो महान बड़ा व क्ष उस पर आरूढ़ है-चढ़ी है। और कैसी है-विषय रूपी पुष्पों से फूल रही है। भावार्थ यह माया कषाय है सो गूढ़ है, इसका विस्तार भी बहुत है जो मुनियों तक फैलती है सो जो मुनि ज्ञान से इसको काट डालते हैं वे सच्चे मनि हैं, वे ही मोक्ष पाते हैं।।१५८।। 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 आगे फिर उन मुनियों की सामर्थ्य को कहते हैं :मोहमयगारवेहि य मुक्का जे करुणभावसंजुत्ता। ते सव्वदुरियखंभ हणंति चारित्तखग्गेण।। १५9।। म टि0-1. इस पद में आया हुआ 'महा' ब्द 'मु0 प्रति' व अन्य म0 व श्रु0 टी0' आदि सब ही प्रतियों में है और 'पं0 जयचन्द जी' ने भी गाथा के अर्थ में इसे देकर इसका अर्थ 'बड़ा' भी वहाँ दिया है अत: 'मूल प्रति' में लिखने में रह गया जानकर इसे यहाँ गाथा में दे दिया गया है। | 崇明崇崇崇崇明藥業騰飛崇明崇明崇崇明業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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