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________________ 卐卐卐業業業業業業卐業卐業卐業卐 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहड़ स्वामी विरचित भावार्थ युद्ध में जीतने वाले शूरवीर तो लोक में बहुत हैं परन्तु जो कषायों को जीतते हैं वे विरले हैं, वे मुनिप्रधान हैं और वे ही शूरवीरों में प्रधान हैं। यहाँ जो सम्यग्दष्टि हो कषायों को जीत चारित्रवान होते हैं वे मोक्ष पाते हैं- ऐसा आशय है ।।१५६ ।। उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'जो स्वयं दर्शन ज्ञान चारित्रवान होकर दूसरों को उन सहित करते हैं वे धन्य हैं' : धण्णा ते भयवंता । दंसणणाणग्रपवरहत्थेहिं । विसयमयरहरपडिया भविया उत्तारिया जेहिं । । १५७ ।। जो विषय सागर में पतित, भव्यों को पार उतारते। वर ज्ञान-दर्शन अग्र कर से, धन्य हैं भगवंत वे ।। १५७ ।। अर्थ जिन सत्पुरुषों ने विषयरूप 'मकरधर' जो समुद्र उसमें पड़े हुए भव्य जीवों को दर्शन और ज्ञान वे ही हुए अग्र मुख्य दो हाथ उनके द्वारा पार उतारा, वे मुनिप्रधान भगवान इन्द्रादि से पूज्य, ज्ञानी धन्य हैं। भावार्थ इस संसार समुद्र से आप तिरें और दूसरों को तारें वे मुनि धन्य हैं। धनादि सामग्री सहित को जो धन्य कहा जाता है वे तो कहने के धन्य हैं ।। १५७ ।। टि0- 1. पं0 जयचंद जी' ने 'भयवंता' शब्द का अर्थ 'भगवंत' करते हुए 'धण्णा ते भयवंता' का अर्थ मुनिप्रधान - भगवान धन्य हैं' - ऐसा किया है। 'वी) प्रति' में 'भयवंता' ब्द का अर्थ 'भयवांता:' (भय का वमन कर दिया है जिन्होंने) किया है तो 'धण्णा ते भयवंता' पद का अर्थ हुआ-'भय का वमन कर देने वाले वे मुनिप्रधान धन्य हैं।' 'भयवंता' (भयवान ) ब्द को 'भविया' का विषण करने पर गाथा का अर्थ होता है कि विषय समुद्र में पड़े हुए भयवान भव्यों को जिन्होंने दनि ज्ञान रूप दो हाथों से पार उतारा वे मुनि धन्य हैं।' (५-१५४ 【專 業 卐卐卐 添黹縢糕糕糕糕糕糕糕糕糕笫業縢◎
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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