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________________ 卐卐業卐業卐業卐業卐業卐業業業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहड़ स्वामी विरचित चार गुण प्रकट होते हैं तथा जब ये गुण प्रकट होते हैं तब लोकालोक को प्रकाशते हैं । भावार्थ घातिया कर्मों का नाश होने पर अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख और अनंतवीर्य-ये अनंत चतुष्टय प्रकट होते हैं, वहाँ अनंतदर्शन - ज्ञान से तो छह द्रव्य से भरा हुआ जो यह लोक उसमें जीव अनंतानंत, पुद्गल उनसे भी अनन्तानंत गुणे और धर्म, अधर्म, आकाश-ये तीन द्रव्य और असंख्यात कालाणु - इन सब द्रव्यों की अतीत, वर्तमान और अनागत काल सम्बन्धी अनंत पर्यायों को भिन्न-भिन्न को एक काल प्रत्यक्ष देखता–जानता है और अनंत सुख से अत्यन्त त प्ति रूप है और अनन्त शक्ति से अब किसी भी निमित्त से अवस्था पलटती नहीं है - इस प्रकार अनन्त चतुष्टय रूप जीव का निज स्वभाव प्रकट होता है इसलिये जीव के स्वरूप का ऐसा परमार्थ से श्रद्धान करना सो ही सम्यग्दर्शन है । । १५० ।। उत्थानिका आगे जिसके अनंत चतुष्टय प्रकट होता है उस परमात्मा के जो अनेक नाम हैं उनमें से कुछ को प्रकट करके कहते हैं : णाणी सिव परमेट्ठी सव्वण्हू विण्हु चउमुहो बुद्धो । अप्पो वि य परमप्पो कम्मविमुक्को य होइ फुडं । । १५१ । । है ज्ञानी, शिव, परमेष्ठी अरु विष्णु, चतुर्मुख, बुद्ध है। परमातमा, आत्मा प्रकट, सर्वज्ञ, कर्मविमुक्त है । । १५१ । । अर्थ परमात्मा है सो ऐसा है - १. ज्ञानी है, २. शिव है, ३. परमेष्ठी है, ४. सर्वज्ञ है, ५. विष्णु है, ६. चतुर्मुख ब्रह्मा है, ७. बुद्ध है, ८. आत्मा है, ६. परमात्मा है और १०. कर्म से विप्रमुक्त-रहित है - यह प्रकट जानो । (५-१४८ 卐卐糕糕 米糕業業卐業卐業業業業業卐業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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