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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहड़
स्वामी विरचित
अक्रियावादी चौरासी, किरियावादी शत अरु अस्सी हैं।
बत्तीस सड़सठ भेद हैं, वैनयिक अरु अज्ञानी के । ।१३७ ।।
अर्थ
एक सौ अस्सी तो क्रियावादी हैं, चौरासी अक्रियावादियों के भेद हैं, अज्ञानी सड़सठ भेद रूप हैं और विनयवादी बत्तीस हैं।
भावार्थ
वस्तु का स्वरूप अनन्त धर्म रूप सर्वज्ञ ने कहा है सो प्रमाण-नयों से सत्यार्थ सधता है। वहाँ जिनके मत में सर्वज्ञ नहीं हैं तथा सर्वज्ञ का स्वरूप यथार्थ निश्चय करके उसका श्रद्धान नहीं किया ऐसे जो अन्यवादी उन्होंने वस्तु का एक-एक धर्म ग्रहण करके पक्षपात किया कि 'हमने ऐसे माना है सो ऐसे ही है, अन्य प्रकार नहीं है' ऐसे विधि-निषेध से एक-एक धर्म के पक्षपाती हुए उनके ये संक्षेप से तीन सौ तरेसठ भेद हैं ।
(१) उनमें कई तो क्रियावादी हैं जिन्होंने गमन करना-बैठना - खड़ा रहना, खाना-पीना-सोना, उत्पन्न होना - नष्ट होना, देखना-जानना, करना-भोगना, भूलना - याद करना, हर्ष करना - विषाद करना, द्वेष करना, जीना मरना इत्यादि जो क्रिया हैं उनको जीवादि पदार्थों के देखकर किसी ने किसी क्रिया का पक्ष किया है, किसी ने किसी क्रिया का पक्ष किया है-ऐसे परस्पर क्रिया के विवाद से भेद हुए हैं, उनके संक्षेप से एक सौ अस्सी भेद का निरूपण किया है, विस्तार करने पर बहुत होते हैं।
(२) कई अक्रियावादी हैं, वे जीवादि पदार्थों में क्रिया का अभाव मान परस्पर विवाद करते हैं। कई कहते हैं कि 'जीव जानता नहीं है, कई कहते हैं- कुछ करता नहीं है, कई कहते हैं-भोगता नहीं है, कई कहते हैं-उपजता नहीं है, कई कहते हैं-विनशता नहीं है, कई कहते हैं-गमन नहीं करता है और कई कहते हैं कि 'स्थित
नहीं होता' इत्यादि क्रिया के अभाव का पक्षपात करके सर्वथा एकान्ती होते हैं। उनके संक्षेप से चौरासी भेद किये हैं ।
(३) कई अज्ञानवादी हैं, उनमें कई तो सर्वज्ञ का अभाव मानते हैं, कई कहते हैं कि 'जीव अस्ति है यह कौन जाने, कई कहते हैं-जीव नास्ति है यह कौन जाने,
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專業
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