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________________ अष्ट पाहुए . sarata स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द DOG Doc Dooll ADOGI -Dod रहित विभाव रूप परिणाम से बंध होता है। इनमें शुद्ध भाव के सन्मुख रहना, उसके अनुकूल शुभ परिणाम रखना तथा अशुभ परिणाम सर्वथा मेटना-यह उपदेश है||११६।। उत्थानिका 崇步骤步骤步骤業禁藥業業業業事業樂業%崇明崇勇崇崇勇 आगे पाप-पुण्य का बंध जैसे भावों से होता है उनको कहते हैं। उनमें प्रथम ही पाप बंध के परिणाम कहते हैं :मिच्छत्त तह कसायासंजमजोगेहिं असुहलेस्सेहिं। बंधइ असुहं कम्मं जिणवयणपरंमुहो जीवो।। ११७ ।। मिथ्यात्व, अविरति अरु कषाय व योग युत लेश्या अशुभ । जिनवच पराङ्मुख जीव जो, बाँधे अशुभ ही कर्म को ।।११७ ।। अर्थ मिथ्यात्व तथा कषाय और असंयम और योग, वे कैसे-अशुभ है लेश्या जिनमें, ऐसे भावों से तो यह जीव अशुभ कर्म को बांधता है। कैसा जीव अशुभ कर्म को बांधता है-जो जिनवचन से पराङ्मुख है वह पाप बांधता है। भावार्थ (१) मिथ्यात्व भाव तो तत्त्वार्थ का श्रद्धान रहित परिणाम है, (२) कषाय क्रोधादि हैं, (३) असंयम परद्रव्य का जो ग्रहण रूप भाव है, त्याग रूप नहीं-ऐसा इन्द्रियों के विषयों से प्रीति और जीवों की विराधना सहित भाव है और (४) योग मन-वचन-काय के निमित्त से आत्मप्रदेशों का चलना है-ये भाव हैं वे जब तीव्र कषाय सहित क ष्ण, नील और कापोत इन अशुभ लेश्या रूप होते हैं तब इस जीव 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 | टि0-1. यहाँ द्ध भाव के सन्मुख रहने की प्रेरणा की, उसके अनुकूल भ परिणाम रखने का अर्थ है-'सारे भ परिणामों से द्धभाव की पुष्टि और उसकी तरफ ढलाव होना चाहिए, भेदज्ञान व आत्मभावना की पुष्टि करते हुए समस्त भभाव व क्रिया की जानी चाहिए' और अभ परिणाम तो सर्वथा हेय हैं ही अत: उन्हें सर्वथा मेटने का उपदे दिया। 116 野紫野紫野紫野野紫野券業 崇崇明藥業藥業助業 FORभालनाTTPS
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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