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भाव पाहुड़
आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहड़
स्वामी विरचित
भावार्थ
विनय बिना मुक्ति नहीं है अतः विनय का उपदेश है । विनय में बड़े गुण हैं- ज्ञान की प्राप्ति होती है, मान कषाय का नाश होता है, शिष्टाचार का पालन है और कलह का निवारण है इत्यादि विनय के गुण जानने अतः सम्यग्दर्शनादि से जो महान हैं उनकी विनय करना - यह उपदेश है और जो विनय बिना जिनमार्ग से भ्रष्ट हुए वस्त्रादि सहित मोक्षमार्ग मानने लगे उनका निषेध है ।। १०४ ।।
उत्थानि
आगे भक्ति रूप वैयाव त्य का उपदेश है :
णियसत्तीए महाजस ! भत्तिराएण णिच्चकालम्मि ।
तं कुण जिणभत्तिपरं विज्जावच्चं दसवियप्पं । । १०५ ।।
निज शक्ति से हे महायश ! कर भक्ति राग से नित्य ही ।
जिनभक्ति तत्पर होके वैयाव त्ति, जो दस भेद युत । । १०५ । ।
अर्थ
हे महायश ! हे मुने ! भक्ति के रागपूर्वक उस वैयाव त्य को तू सदा काल अपनी शक्ति से कर। कैसे कर-जैसे जिनभक्ति में तत्पर हो वैसे कर। कैसा है वैयाव त्य-‘दशविकल्प' अर्थात् दस भेद रूप है। वैयाव त्य नाम दूसरे के दुःख या कष्ट आने पर सेवा चाकरी करने का है। उसके दस भेद हैं। आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ- ये दस भेद मुनियों के हैं इनका वैयाव त्य किया जाता है इसलिए वैयाव त्य के दस भेद कहे हैं । ।१०५ ।।
उत्थानिका
आगे 'अपने दोष को गुरु के पास कहना - ऐसी गर्हा का उपदेश करते हैं :
५-१०४
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