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________________ अष्ट पाहुड़ अष्ट पाहुstrata स्वामी विरचित G... आचार्य कुन्दकुन्द DOG FDOG) Deo/S 1000 colle भावार्थ यह प्राणी मैथुन संज्ञा में आसक्त हुआ ग हस्थपना आदि अनेक उपायों से स्त्रीसेवनादि अशुद्ध कार्यों में प्रवर्तता है और उससे इस भयानक संसार समुद्र में भ्रमण करता है इसलिए यह उपदेश है कि 'दस प्रकार के अब्रह्म को छोड़कर नौ प्रकार के ब्रह्मचर्य को अंगीकार करो।' । उपरोक्त दस प्रकार का अब्रह्म तो इस प्रकार है-(१) प्रथम तो स्त्री का चितवन होता है, (२) फिर उसे देखने की इच्छा होती है, (३) पीछे फिर निश्वास डालता है, (४) फिर ज्वर उत्पन्न होता है, (५) फिर दाह उपजती है, (६)तत्पश्चात् काम की रुचि उत्पन्न होती है, (७) पीछे मूर्छा होती है, (8) फिर उन्माद उपजता है, (७) पीछे जीने का संदेह उत्पन्न होता है और (१०) तत्पश्चात् मरण हो जाता 聯繫听器听听听听听听听听听听听听听听听听器 पुनः नौ प्रकार का ब्रह्मचर्य ऐसे है-जिन नौ कारणों से ब्रह्मचर्य बिगड़ता है उनके नाम ये हैं-१. स्त्रीसेवन की अभिलाष, २. स्त्री के अंग का स्पर्श, ३. पुष्ट रस का सेवन, ४. स्त्री से संसक्त शय्या आदि वस्तु का सेवन, ५. स्त्री के मुख और नेत्र आदि का देखना, ६. स्त्री का सत्कार-पुरस्कार करना, ७. पूर्व में जो स्त्री का सेवन किया था उसको याद करना, ८. आगामी स्त्रीसेवन की अभिलाषा करना और ६. मनवांछित इष्ट विषयों का सेवना। ऐसे जो नौ कारण हैं उनका वर्जन करना सो नौ भेद रूप ब्रह्मचर्य है अथवा मन, वचन, काय एवं क त, कारित, अनुमोदना से ब्रह्मचर्य को पालना-ऐसे भी नौ प्रकार कहे जाते हैं। ऐसा करना भी भाव शुद्ध होने का उपाय है।।98 ।। 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'जो भाव सहित मुनि हैं वे आराधना के चतुष्क को पाते हैं और भाव रहित मुनि संसार में भ्रमण करते हैं' :भावसहिदो य मुणिणो पावइ आराहणाचउक्कं च। भावरहिदो य मुणिवर भमइ चिरं दीहसंसारे ।। 99।। 西藥業業崇崇崇明藥業樂業先崇明崇明崇勇
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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