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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहड़
स्वामी विरचित
भावार्थ
शुभ क्रिया रूप पुण्य को धर्म जानकर जो उसका श्रद्धान- ज्ञान - आचरण करता
है उसके पुण्य कर्म का बंध होता है जिससे उसे स्वर्गादि के भोगों की प्राप्ति होती
है
परन्तु उससे कर्म का क्षय रूप संवर, निर्जरा एवं मोक्ष नहीं होता । । ४४ । ।
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'जो आत्मा का स्वभाव रूप धर्म है सो ही मोक्ष का कारण है - ऐसा नियम है' :
अप्पा अप्पम्मि रओ रायादिसु सयलदोसपरिचत्तो ।
संसारतरणहेउ धम्मोत्ति जिणेहिं णिद्दिट्टो ।। ४५ । । रागादि दोष समस्त तज के, आत्मा आत्मा में हो रत ।
भवतरण कारण धर्म है यह ऐसा जिनवर ने कहा । । 8५ ।।
अर्थ
जिसमें आत्मा रागादि समस्त दोषों से रहित होता हुआ आत्मा में ही रत होऐसा धर्म जिनेश्वर देव ने संसार से तिरने का कारण कहा है।
भावार्थ
पूर्व में कहा था कि मोह के क्षोभ से रहित जो आत्मा का परिणाम है सो धर्म
है सो ऐसा धर्म ही संसार से पार कराता है और उसे ही मोक्ष का कारण भगवान ने कहा है- यह नियम है ।। 8५ ।।
उत्थानिका
आगे इसी अर्थ को दढ़ करने के लिए कहते हैं कि 'जो समस्त पुण्य का तो आचरण
करता है परन्तु आत्मा को इष्ट नहीं करता वह भी सिद्धि को नहीं पाता' :
अह पुण अप्पा णिच्छदि पुण्णाइं करेदि णिरवसेसाई ।
तह विण पावदि सिद्धिं संसारत्थो पुणो भणिदो ।। 8६ ।।
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