________________
अष्ट पाहुए .
sarata
स्वामी विरचित
आचाय कुन्दकुन्द
ADOO FDOG) -Dec
Do||
DO
Dod
Dod Dool
.
聯繫听器听听器听听听听听听听听听听听听听器垢器
भावेण होइ णग्गो मिच्छत्ताई य दोस चइऊण। पच्छा दव्वेण मुणी पयडदि लिंगं जिणाणाए।। ७३।। पहले हो भाव से नग्न मुनि, मिथ्यात्व आदिक दोष तज। प्रकटावे पीछे द्रव्य लिंग, जिनेन्द्र की आज्ञा यही ।।७३ ।।
अर्थ पहले मिथ्यात्व आदि दोषों को छोड़कर भाव से अन्तरंग नग्न हो एकरूप शुद्ध आत्मा का श्रद्धान-ज्ञान-आचरण करे, पीछे मुनि द्रव्य से बाह्य लिंग जिन आज्ञा के अनुसार प्रकट करे-यह मार्ग है।
भावार्थ भाव शुद्ध हुए बिना पहले ही दिगम्बर रूप धारण कर ले तो पीछे भाव बिगड़े तब भ्रष्ट हो जाये और भ्रष्ट होकर भी मुनि कहलाया करे तो मार्ग की हँसी करावे इसलिए जिन आज्ञा यह ही है कि 'भाव शुद्ध करके बाह्य में मुनिपना प्रकट करो' |७३।।
先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁
आगे कहते हैं कि 'शुद्ध भाव स्वर्ग-मोक्ष का कारण है और मलिन भाव संसार
का कारण है :भावो वि दिव्वसिवसुखभायणो भाववज्जिओ समणो। कम्ममलमलिणचित्तो तिरियालयभायणो पावो।। ७४ ।।
हो भाव से ही दिव्य-शिव सुख, भाववर्जित श्रमण जो। तिर्यंच गति स्थान, पापी, कर्ममल से मलिन वो।७४।।
अर्थ
जो भाव से युक्त है सो ही स्वर्ग-मोक्ष सुख का पात्र है तथा जो भाव से वर्जित श्रमण
藥業業業蒸蒸站、崇崇明崇崇崇崇明崇站