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________________ अष्ट पाहुए . sarata स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द HBC ADOG) DoG/S -Dod घात करने लगे तब द्वीपायन भूमि पर गिर पड़े और उन्हें क्रोध उत्पन्न हुआ जिसके निमित्त से द्वारिका दग्ध हुई। इस प्रकार द्वीपायन भावशुद्धि के बिना अनंत संसारी हुए।।५० ।। उत्थानिका 崇步骤步骤步骤業禁藥業業業業事業樂業%崇明崇勇崇崇勇 आगे भावशुद्वि सहित मुनि होकर जिन्होंने सिद्वि पाई उन जम्बूस्वामी पूर्व भवधारी शिवकुमार मुनि का उदाहरण कहते हैं :भावसवणो य धीरो जुवईयणवेढिओ य सुद्धमई। णामेण सिवकुमारो परीतसंसारिओ जादो।। ५१।। युवतिजनों से घिरे धीर, विशुद्धबुद्धी भावमुनि। था नाम जिनका शिवकुमार, परीत संसारी हुए।।१।। अर्थ विशुद्धबुद्धि और धीर-वीर शिवकुमार नामक भावश्रमण स्त्रीजनों से घिरे हुए होने पर भी संसार का पार पा गये। भावार्थ __ भाव की शुद्धता से ब्रह्म स्वर्ग में विद्युन्माली देव होकर और वहाँ से चयकर जम्बूस्वामी केवली होकर जिन्होंने मोक्ष पाया, उन शिवकुमार की कथा इस प्रकार है-इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश के वीतशोकपुर में महापद्म राजा एवं वनमाला रानी के शिवकुमार नामक पुत्र हुआ सो वह एक दिन मित्र सहित क्रीड़ा करके नगर में आ रहा था। उसने मार्ग में पूजा की साम्रगी ले जाते हुए लोगों को देखा तब मित्र से पूछा कि 'ये कहाँ जा रहे है ?' मित्र ने कहा | कि 'ये सागरदत्त नामक ऋद्धिधारी मुनि को पूजने के लिए वन में जा रहे हैं।' तब शिवकुमार ने मुनि के पास जाके अपने पूर्व भव सुनकर संसार से विरक्त हो दीक्षा ले ली और द ढ़धर्म नामक श्रावक के घर प्रासुक आहार लिया। उसके बाद स्त्रियों के निकट परम ब्रह्मचर्य रूप असिधारा व्रत को पालते हुए बारह वर्ष तक तप कर 業業樂崇崇勇攀業 崇崇明藥業%崇勇崇明業 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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