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________________ अष्ट पाहुड़ . .at स्वामी विरचित GOOK आचार्य कुन्दकुन्द DOG Doolle 添添添添添添樂樂業兼藥事業兼藥業男崇勇 का कारण होता है। इसका उदाहरण बाहु मुनि का बताया जिनकी कथा इस प्रकार है-दक्षिण दिशा में कुम्भकारकटक नगर में एक दंडक नामक राजा था, उसके बालक नाम मंत्री था, वहाँ अभिनन्दन आदि पाँच सौ मुनि आये। उनमें एक खण्डक नामक मुनि थे जिन्होंने बालक नामक मंत्री को वाद में जीत लिया। तब मंत्री ने क्रोध करके एक भांड को मुनि का रूप धारण कराके राजा की रानी सुव्रता के साथ में रमते हुए राजा को दिखाया और कहा कि 'देखो, राजा के ऐसी भक्ति है जो अपनी स्त्री भी दिगम्बर को रमने के लिए दे दी है। तब राजा ने दिगम्बरों पर क्रोध करके पाँच सौ मुनियों को घाणी में पिलवाया। वे मुनि उपसर्ग सहकर परम समाधि से सिद्धि को प्राप्त हुए। पीछे उस नगर में बाहु नामक मुनि आये। उनको लोगों ने मना किया कि 'यहाँ का राजा दुष्ट है अतः तुम नगर में प्रवेश मत करो। पहिले भी उसने पाँच सौ मुनियों को घाणी में पेला है सो वह तुम्हारे साथ वैसा ही करेगा। तब लोगों के वचनों से बाहु मुनि को क्रोध उत्पन्न हुआ, तब उन्होंने अशुभ तैजस समुद्घात से ) राजा और मंत्री सहित सारे नगर को भस्म किया। राजा और मंत्री सातवें नरक के रौरव नामक बिल में पड़े। बाहू मुनि भी मरकर वहाँ ही रौरव बिल में गिरे। इस प्रकार द्रव्यलिंग में भाव के दोष से उपद्रव होता है इसलिए भावलिंग का प्रधान उपदेश है।।89 ।। 營業养养崇明藥崇崇崇勇兼崇勇攀事業事業事業蒸蒸勇崇勇樂 टि0-1.गाथा 34 में 'भावलिंग के बिना भी द्रव्यलिंग के पहले धारण करने की बात कही कि यदि इसका निषेध करोगे तो व्यवहार के लोप का दूषण आएगा।' यहाँ कह रहे हैं कि 'द्रव्यलिंग भाव सहित तो धारना श्रेष्ठ है और केवल द्रव्यलिंग तो उपद्रव का कारण होता है।' तो अलग-अलग स्थल पर भिन्न-भिन्न विवक्षा होती है। यह विवेचन बाहु मुनि की कथा के प्रसंग में आया है अत: यहाँ यही विवेचन सही है कि 'द्रव्यलिंग धारकर कुछ तप करके सामर्थ्य बढ़ने पर क्रोध करके यह जीव अपना और पर का उपद्रव का कारण बना लेता है अत: द्रव्यलिंग भाव सहित ही धारना' पर गाथा 34 के अनुसार जो सही श्रद्धान करके द्रव्यलिंग धारकर भावलिंग सम्मुख उपयोग रख रहा है वह द्रव्यलिंग को धारण करके भावलिंग की सिद्धि करेगा न कि उपद्रव मचाएगा। प्रकरण के वा से कहीं पर कोई कथन आचार्य करते हैं तो उसे सर्वथा किया गया नहीं समझना चाहिए। केवल द्रव्यलिंग उपद्रव का कारण होता है'-इस वचन से सर्वथा ऐसा न समहना कि इसलिए भावलिंग रहित द्रव्यलिंग धारना ही नहीं। गाथा 34 के भावार्थ को दष्टि में रखकर ही हमें इन कथनों का अर्थ समझना चाहिये। 樂樂業先崇明崇明崇明藥冬崇寨寨崇崇明崇勇崇勇
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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