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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहड़
में जाते हुए उन्होंने लोगों के वचन सुने कि 'राजा मुनि को स्वयं तो आहार देता नहीं और दूसरों को देने से मना किया है।' लोगों के ऐसे वचन सुनकर मुनि ने राजा पर क्रोध करके निदान किया कि 'इस तप का मुझे यह फल हो कि मैं इस राजा का पुत्र होकर इसका निग्रह करके राज्य करूँ ।'
स्वामी विरचित
इस प्रकार निदान करके वह मरा और राजा उग्रसेन की रानी पद्मावती के गर्भ में आया, पूर्ण मास होने पर जन्म लिया तब इसको क्रूरद ष्टि देख कांसी की पेटी में स्थापित करके व त्तान्त के लेख सहित यमुना नदी में बहाया। तब कौशाम्बीपुर में मन्दोदरी नामक कलाली (मदिरा बेचने वाली) ने उसको लेकर पुत्रबुद्धि से पाला और कंस नाम दिया। वहाँ बड़ा हुआ तब बालकों के साथ कीड़ा करते समय यह सबको दुःख देता था। तब मंदोदरी ने उलाहनों के दुःख से इसको निकाल दिया तब यह कंस शौर्यपुर जाकर राजा वसुदेव के पयादा सेवक होकर रहा ।
पीछे जरासंध प्रतिनारायण का पत्र आया कि 'पोदनपुर के राजा सिंहरथ को जो बाँधकर लायेगा उसके साथ आधे राज्य सहित पुत्री का विवाह करूँगा ।' तब वसुदेव वहाँ कंस सहित जाकर युद्ध करके सिंहरथ को बाँध लाया और उसे जरासंध को सौंप दिया। तब जरासंध ने उसे जीवंयशा पुत्री सहित आधा राज्य दिया। तब वसुदेव ने कहा कि 'सिंहस्थ को कंस बाँधकर लाया है सो इसे इसको दो।' तब जरासंध ने इसका कुल जानने को मन्दोदरी को बुलाकर इसके कुल का निश्चय करके इसके साथ जीवंयशा पुत्री का विवाह किया तब कंस ने मथुरा का
राज्य
लेकर आकर पिता उग्रसेन राजा को और पद्मावती माता को बंदीखाने में डाला तथा पीछे कष्ण नारायण से मत्यु को प्राप्त हुआ - इसकी कथा विस्तार से 'हरिवंशपुराण' आदि से जानना । इस प्रकार वशिष्ठ मुनि ने निदान से सिद्धि को नहीं पाया इसलिए भावलिंग से ही सिद्धि है । । ४६ ।।
उत्थानिका
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आगे कहते हैं कि 'भाव रहित चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है' :
專業專業
५-५५
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