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________________ अष्ट पाहुड़ . .at स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द DOG HDooll Dod Dool म 崇崇崇崇崇崇崇先業業業%崇勇崇崇崇崇崇崇崇 अर्थ देह और आहार आदि में छोड़ा है व्यापार जिन्होंने ऐसे मधुपिंगल नामक मुनि निदान मात्र से भावश्रमणपने को प्राप्त नहीं हुए उनको हे भव्य जीवों के द्वारा नमने योग्य मुनि ! तू देख। भावार्थ मधुपिंगल नामक मुनि की कथा पुराणों में है उसका संक्षेप ऐसा है-इस भरत क्षेत्र के सुरम्य देश में पोदनपुर का राजा त णपिंगल का पुत्र मधुपिंगल था। वह चारणयुगल नगर के राजा सुयोधन की पुत्री सुलसा के स्वयंवर में आया था और वहाँ ही साकेतपुरी का राजा सगर भी आया था सो सगर के मंत्री ने नवीन सामुद्रिक शास्त्र बनाकर कपट से मधुपिंगल को दूषण दिया कि 'इसके नेत्र पिंगल (पीत) हैं, मांजरे हैं सो इसको जो कन्या वरेगी वह मरण को प्राप्त होगी' ऐसा सुनकर कन्या ने सगर के गले में वरमाला डाल दी, मधुपिंगल का वरण नहीं किया तब मधुपिंगल ने विरक्त होकर दीक्षा ले ली, पीछे कारण पाकर सगर के मंत्री के कपट को जानकर क्रोध से निदान किया कि 'मेरे तप का फल यह हो कि जन्मान्तर में मैं सगर के कुल को निर्मूल करूँ।' तत्पश्चात् मधुपिंगल मरकर 'महाकालासुर' नामक असुर देव हुआ और फिर सगर को मंत्री सहित मारने का उपाय खोजने लगा, तब उसको क्षीरकदम्ब ब्राह्मण का पापी पुत्र पर्वत मिला, तब पशुओं की हिंसा रूपी यज्ञ का सहायी होकर उसने इसे कहा कि 'तू सगर राजा को यज्ञ का उपदेश देकर यज्ञ करवा, मैं तेरे यज्ञ का सहायक होऊँगा। तब पर्वत ने सगर से यज्ञ करवाया और पशु होमे। उस पाप से सगर सातवें नरक गया और कालासुर सहायक हुआ सो यज्ञ के करने वालों को स्वर्ग गये दिखाये। इस प्रकार मधुपिंगल नामक मुनि ने निदान करके कालासुर देव होकर महापाप का उपार्जन किया इसलिए आचार्य कहते हैं कि 'मुनि होकर भी भाव बिगड़ जाएं तो वह सिद्धि को नहीं पाता।' इसकी कथा विस्तार से पुराणों से जानना ।।४५।। 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 आगे वशिष्ठ मुनि का उदाहरण कहते हैं :崇明崇明崇崇明崇帶際拳拳拳拳崇明藥
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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