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________________ अष्ट पाहुए . sarata स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द -Dory DOGIS Dool DOC/ Dog/ lect अर्थ यह लोक तीन सौ तेतालीस राजू प्रमाण क्षेत्र है उसके बीच मेरु के नीचे गोस्तन के आकार के आठ प्रदेश हैं, उनको छोड़कर अन्य कोई प्रदेश ऐसा शेष नहीं रहा जिसमें यह जीव नहीं जन्मा-मरा हो। भावार्थ यहाँ 'दुरुढुल्लिओ' ऐसा प्राकृत में 'भ्रमण' अर्थ की धातु का आदेश है और क्षेत्र परावर्तन में मेरु के नीचे जो आठ प्रदेश लोक के मध्य में हैं, उनको जीव अपने प्रदेशों के मध्य में देकर उत्पन्न होता है और क्योंकि वहाँ से क्षेत्र परावर्तन का प्रारम्भ किया जाता है इसलिए उनको पुनरुक्त भ्रमण में नहीं गिना जाता।।३६।। उत्थानिका 崇%崇崇崇崇崇明藥業業助兼業助兼事業事業%崇崇勇崇勇崇 आगे यह जीव शरीर सहित उत्पन्न होता और मरता है, उस शरीर में जो रोग __ होते हैं उनकी संख्या दिखाते हैं :एक्कक्कंगुलि वाही छण्णवदी होति जाण मणुयाणं। अवसेसे य सरीरे रोया भणि केत्तिया भणिया।। ३७।। एकैक अंगुल क्षेत्र में, जब रोग होते छ्यानवे । कहो रोग कितने होंगे फिर, सम्पूर्ण मानव देह में । ।३७ ।। 營業养养崇明藥崇崇崇勇兼崇勇攀事業事業事業蒸蒸勇崇勇樂 अर्थ इस मनुष्य के शरीर में एक-एक अंगुल में छयानवे-छ्यानवे रोग होते हैं तब कहो ! अवशेष समस्त शरीर में कितने रोग होंगे !||३७।। टिO-1. आधुनिक मनुष्य का रीर साढ़े तीन हाथ का होता है। एक हाथ में चौबीस अंगुल होते हैं तो साढ़े तीन हाथ में चौरासी अंगुल हुए। यह तो लम्बाई की अपेक्षा संख्या आई, अब चौड़ाई व मोटाई के भी अंगुल ले लेने चाहिए और उन सबको आपस में गुणा करके 96 से गुणा कर देना चाहिए क्योंकि एक अंगुल में छियानवे रोग होते हैं तो पूरे रीर में रोगों की संख्या निकल आएगी। आगम में पूरे रीर में पांच करोड़ अड़सठ लाख निन्यानवे हजार पांच सौ चौरासी' रोग कहे हैं। इस सम्बन्धित गाथा निम्न प्रकार है पंचेव य कोडीओ तह चेव अड़सट्ठि लक्खाणि। णवणवदि य सहस्सा पंचसया होति चुलसीदी।। 崇明崇崇明崇明崇明崇勇 、崇崇明崇勇兼業助兼崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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