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________________ ANY ※卐糕糕蛋糕糕糕渊渊卐業業 आचार्य कुन्दकुन्द अष्ट पाहुड़ साधन है परन्तु काललब्धि के बिना द्रव्यलिंग धारण करने पर भी भावलिंग की प्राप्ति नहीं होती इस कारण द्रव्यलिंग निष्फल चला जाता है-इस प्रकार मोक्षमार्ग प्रधानता से भावलिंग ही है । ' यहाँ कोई कहता है कि 'यदि ऐसा है तो द्रव्यलिंग को पहले क्यों धारण करना ?‘उसको कहते हैं कि 'ऐसा मानने से तो व्यवहार का लोप होता है इसलिए ऐसा मानना कि 'द्रव्यलिंग पहले धारण करना परन्तु उसे ऐसा न जानना कि इसी से ही सिद्धि है। भावलिंग को प्रधान मानकर उसके सन्मुख उपयोग रखना और द्रव्यलिंग को यत्न से साधना - ऐसा श्रद्धान भला है' 1 ।। ३४ ।। उत्थानिका स्वामी विरचित आगे पुद्गल द्रव्य को प्रधान करके भ्रमण कहते हैं : टि0- 1. जो सही दष्टि व मान्यता रखके मात्र द्रव्यलिंग को भावलिंग के बिना धारण करता है, उसके परम्परा से भावलिंग की प्राप्ति हो जाती है परन्तु यदि कदाचित् किसी को न हो तो इसमें काललब्धि के अभाव को ही कारण समझना कि उस जीव की अभी काललब्धि नहीं आई है। 卐糕糕 न द्रव्य व भावलिंग के बारे में वह सही मान्यता क्या है ? उत्तर - मोक्षमार्ग क्योंकि प्रधानता से भावलिंग ही है अत: वास्तव में तो भावलिंगपूर्वक ही द्रव्यलिंग धारण करना चाहिए परन्तु भावलिंग के बिना भी किसी जीव के यदि मुनि योग्य सारी क्रियाओं सहित मात्र द्रव्यलिंग धारण करने की उग्र भावना बने तो उसे धारने का निषेध नहीं है और उसे धारकर यत्न से साधना भी चाहिए परन्तु उसी से साध्य की सिद्धि नहीं मान लेनी चाहिए, उसे धारकर भावलिंग को प्रधान मान उसके सम्मुख उपयोग रखकर उसकी प्राप्ति की चेष्टा करनी चाहिए। ऐसा करने से कालांतर में भावलिंग की प्राप्ति हो जाएगी पर मात्र द्रव्यलिंग का धारण करना सफल भावलिंग के होने पर ही कहलाएगा। गाथा 34 के इस भावार्थ में 'पं0 जयचन्द जी' ने आगम के बहुत सुन्दर सत्य उजागर कि हैं कि 'भावलिंग के बिना भी द्रव्यलिंग के पहले धारण करने का निषेध यदि करोगे तो व्यवहार के लोप का बड़ा दूषण आएगा अतः उसे धारना है, धारण करके वहाँ रुकना भी नहीं, भावलिंग धारने का सतत पुरुषार्थ करना है और द्रव्यलिंग की ओर भी विमुखता नहीं वर्तनी, उसे भी यत्न से साधना है।' 糕 ५-४५ 卐業業 wwww 【米米米米米米米米米米
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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