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________________ अष्ट पाहुड़ . .at स्वामी विरचित है आचार्य कुन्दकुन्द HDool DOG ADOO DOG) -Dec/s -Dos/ FDod HDool 德崇崇崇崇崇明藥藥業業事業蒸蒸業業業業助兼業 चार प्रकार का है- १. पाँच इन्द्रियों के विषयों में राग-द्वेष सहित मरना इन्द्रिय वशार्तमरण है। २. साता-असाता की वेदना सहित मरना वेदना वशार्तमरण है। ३. क्रोध, मान, माया व लोभ कषाय के वश से मरना कषाय वशार्तमरण है और ४. हास्यादि नोकषाय के वश से मरना नोकषाय वशार्तमरण है। १२. विप्राणसमरण-अपने व्रत, क्रिया एवं चारित्र में कोई उपसर्ग आवे सो सहा भी न जावे और भ्रष्ट होने का भय आवे तब अशक्त हुआ अन्न-पानी का त्याग करके जो मरे सो ऐसे का मरण विप्राणसमरण है। १३. गद्धपष्ठमरण-शस्त्र ग्रहण करके मरना ग द्धप ष्ठमरण है। १४. भक्तप्रत्याख्यानमरण-आहार-पानी का अनुक्रम से यथाविधि त्याग करके मरना सो भक्तप्रत्याख्यानमरण है। १५. इंगिनीमरण-संन्यास करे और अन्य के पास वैयाव त्य न करावे सो ऐसे का मरण इंगिनीमरण है। १६. प्रायोपगमनमरण-जो प्रायोपगमन संन्यास करे, किसी के पास वैयाव त्य न करावे और अपने आप भी न करे, प्रतिमायोग से रहे सो ऐसे का मरण प्रायोपगमनमरण है। १७. केवलिमरण-केवली का मुक्ति को प्राप्त होना सो केवलिमरण है। ऐसे जो सतरह प्रकार कहे उनका संक्षेप ऐसा किया है-मरण पाँच प्रकार का है-१. पंडितपडित, २. पंडित, ३. बालपंडित, ४. बाल एवं ५. बालबाल। इनमें १. जो दर्शन-ज्ञान-चारित्र के अतिशय सहित हो सो वह तो पंडितपंडित है, २. इनकी प्रकर्षता जिसके न हो वह पंडित है, ३. सम्यग्द ष्टि श्रावक सो बालपंडित है ४. पूर्व में जो चार प्रकार के पंडित कहे उनमें से एक भी भाव जिसके नहीं हो सो बाल है और ५. जो सबसे न्यून हो वह बालबाल है। इनमें पंडितपंडितमरण, पंडितमरण और बालपंडितमरण-ये तीन तो प्रशस्त सुमरण कहे गये हैं और अन्य रीति हो सो कुमरण है। इस प्रकार जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के एकदेश या सर्वदेश सहित मरे वह सुमरण है-इस प्रकार सुमरण करने का उपदेश है।।३२।। 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 藥業業業藥業因業失業兼業助兼業助兼業助
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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