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________________ 卐卐業卐業卐業卐業卐業業業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्ट पाहड़ स्वामी विरचित समर्थ जिसका शरीर न हो वह अव्यक्तबाल है । २. जो लोक के और शास्त्र के व्यवहार को नहीं जानता हो तथा जिसकी बालक अवस्था हो वह व्यवहारबाल है । ३. तत्त्वश्रद्धान रहित मिथ्याद ष्टि दर्शनबाल है । ४. वस्तु के यथार्थ ज्ञान ह ज्ञानबाल है। ५. चारित्र रहित प्राणी चारित्रबाल है । इनका मरण सो बालमरण है। यहाँ प्रधान रूप से दर्शनबाल ही का ग्रहण है क्योंकि सम्यग्द ष्टि के अन्य बालपना होते हुए भी दर्शन पांडित्य के सद्भाव से उसके मरण को पंडितमरण में ही गिना है। इनमें दर्शनबाल का संक्षेप से ये दो प्रकार का मरण कहा है१. इच्छाप्रव त्त एवं २. अनिच्छाप्रव त्त। सो अग्नि से, धुएँ से, शस्त्र से, विष से, जल से, पर्वत के किनारे पर से गिरने से, उच्छ्वास रोकने से, अति शीत-उष्ण की बाधा से, रस्से के बंधन से, क्षुधा से, त षा से, जीभ उखाड़ने से एवं विरुद्ध आहार के सेवन से जो बाल अज्ञानी चाहकर मरे उसका मरण इच्छाप्रवत है तथा जो जीने का इच्छुक हो और मर जाए उसका मरण अनिच्छाप्रवत्त है। ६. पंडितमरण-पंडित चार प्रकार के हैं - १. व्यवहारपंडित, २. सम्यक्त्वपंडित, ३. ज्ञानपंडित तथा ४. चारित्रपंडित । १. लोक शास्त्र के व्यवहार में जो प्रवीण हो वह व्यवहारपंडित है । २. जो सम्यक्त्व सहित हो वह सम्यक्त्वपंडित है। ३. जो सम्यग्ज्ञान सहित हो वह ज्ञानपंडित है एवं ४. जो सम्यक् चारित्र सहित हो वह चारित्रपंडित है । यहाँ दर्शन - ज्ञान - चारित्र सहित पंडित के मरण का ग्रहण है क्योंकि व्यवहारपंडित मिथ्याद ष्टि का मरण बालमरण में आ गया। ७. आसन्नमरण–मोक्षमार्ग में प्रवर्तने वाले साधु संघ से जो छूटा उसको ‘आसन्न’ कहते हैं उनमें पार्श्वस्थ, स्वच्छंद, कुशील एवं संसक्त भी लेने-ऐसे पाँच प्रकार के भ्रष्ट साधुओं का मरण सो आसन्नमरण है। 8. बालपंडितमरण - सम्यग्द ष्टि श्रावक का मरण सो बालपंडितमरण है। 9. सशल्यमरण-यह दो प्रकार का है - मिथ्यादर्शन, माया व निदान-ये तीन शल्य तो भाव शल्य हैं और पांच स्थावर तथा त्रस में असैनी - ये द्रव्य शल्य सहित हैं- ऐसे सशल्यमरण है । १०. पलायमरण - जो प्रशस्त क्रिया में आलसी हो, प्रमादी हो, व्रतादि में शक्ति को छिपावे एवं ध्यानादि से दूर भागे-ऐसे का मरण सो पलायमरण है । ११. वशार्तमरण–आर्त- रौद्र ध्यान सहित मरण को वशार्तमरण कहते हैं सो वह इन ५-४१ 卐業 五卷卐業卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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