________________
अनुक्रम
1. गाथा विवरण
क्रमांक
विषय
१. पच परमेष्ठी की वंदना रूप मंगलाचरण एवं भावपाहुड़ के निरूपण की प्रतिज्ञा
२. भावलिंग ही प्रमुख है द्रव्यलिंग नहीं, गुण दोषों का कारण भाव ही है
३. भावविशुद्धिनिमित्तक बाह्य त्याग अभ्यंतर परिग्रह के त्याग बिना निष्फल है।
४. करोड़ों भवों में तप करने पर भी भावरहित के सिद्धि नहीं होती ५. भावविहीन के बाह्य त्याग क्या करता है, कुछ भी तो नहीं
६. भाव ही को परमार्थ जानकर उसे ही अंगीकार करने की प्रेरणा ७. भावरहित जीव के द्वारा निर्ग्रन्थ मुद्रा धारण करने की निष्फलता ८. भावरहित को चारों गतियों के तीव्र दुःखों का स्मरण कराके जिनभावना भाने का उपदेश
९. भाव के बिना सातों नरकों में दारुण, भीषण व असहनीय दुःखों को निरन्तर भोगा
१०. भावरहित होकर तिर्यंच गति के छहों काय में चिरकाल तक दुःख भोगे
११. भाव के बिना मनुष्य गति में चार प्रकार के दुःख अनंतकाल पर्यन्त प्राप्त किये
१२. शुभ भावना से रहित देवगति में भी तीव्र मानसिक दुःख पाये १३. द्रव्यलिंगी मुनि की कान्दर्पी आदि अशुभ भावनाओं के कारण हीन देवों में उत्पत्ति
१४. अनादिकाल से लेकर अनेक बार पार्श्वस्थ आदि खोटी
भावनाओं से दुःख ही पाया
१५.
स्वर्ग में हीन देव होकर अन्य महर्द्धिक देवों की विभूति, ऋद्धि आदि से बहुत मानसिक दुःखों की प्राप्ति
पष्ठ
५-३
4-98
५-१५
५-१६
५-१८
५-१६
५-२०
५-२१
५-२१
५-२२
५-२३
५-२३
५-२४
५-२६
५-२७
५-२०